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इस वजह से गडकरी का एमएसएमई विभाग दिया गया राणे को

दूर की सोच के तहत किया गया मंत्रिमंडल विस्तार

नई दिल्ली/दि.8 – गत रोज मोदी सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया. जिसमें 43 नये चेहरों को अवसर प्रदान किया गया. जिनमें महाराष्ट्र के चार सांसदों को मंत्रिमंडल में मौका मिला. साथ ही जो मंत्री अपने विभागों का काम बेहतरीन ढंग से नहीं संभाल सके है, उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाते हुए उनके स्थान पर नये मंत्री नियुक्त किये गये है. इन सबके बीच केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी के पास रहनेवाले सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्योग (एमएसएमई) मंत्रालय को महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सदस्य नारायण राणे को सौंपा गया है. हालांकि गडकरी द्वारा एमएसएमई मंत्रालय को बेहतरीन तरीके से संभाला जा रहा था, इसके बावजूद यह विभाग उनके पास से निकालकर राणे को क्यो दिया गया? इसे लेकर कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई है.
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक नितीन गडकरी के पास केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय तथा एमएसएमई मंत्रालय जैसे दो बेहद महत्वपूर्ण विभाग थे. गडकरी ने केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय के तहत समूचे देश में रास्तों का काफी बडा नेटवर्क खडा किया. ठीक इसी तरह एमएसएमई मंत्रालय का भी काम काफी व्यापक है. ऐसे में यदि इन दोनों मंत्रालयों को दो अलग-अलग सक्षम मंत्रियों को दिया जाता है, तो दोनों ही विभागों का काम बेहतरीन तरीके से चल सकता है. इस सोच के तहत महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री रहनेवाले नारायण राणे को एमएसएमई जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया है और चूंकि गडकरी व राणे महाराष्ट्र से ही वास्ता रखते है. ऐसे में इस फेरबदल की वजह से महाराष्ट्र का कोई नुकसान नहीं होगा. बल्कि यह विभाग राणे को दिये जाये की वजह से महाराष्ट्र को फायदा ही होगा. ऐसा भी राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है.
ज्ञात रहें कि, कोविड संक्रमण काल के दौरान नितीन गडकरी ने रेमडेसिविर इंजेक्शन व ऑक्सिजन उपलब्ध कराने हेतु काफी महत्वपूर्ण कदम उठाये. जिसके लिए विपक्षियों द्वारा भी नितीन गडकरी की प्रशंसा की गई. ठीक उसी समय कोविड काल के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृहमंत्री अमीत शाह की देश सहित विदेशों में काफी आलोचना हुई थी. ऐसे में इन चर्चाओं को भी काफी बल रहा था कि, कही गडकरी का महत्व कम तो नहीं किया जा रहा. किंतु विश्लेषकों का मानना है कि, भाजपा एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल की रचना को देखते हुए उस पर पूरी तरह से पीएम मोदी का नियंत्रण है और अन्यों की भूमिका सहायक की है. किंतु इसके बावजूद जो मंत्री सच में कार्यक्षम है और अपने कामों के जरिये अपना प्रभाव डाल सकते है, उनमें से नितीन गडकरी व पीयूष गोयल का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है, जिन्होंने पीएम मोदी का नियंत्रण रहने के बावजूद अपने कामों से अपनी एक अलग पहचान बनायी है. ऐसे में नितीन गडकरी का एक विभाग कम किये जाने की वजह से उनका महत्व कम नहीं होगा, बल्कि वे किसी भी विभाग में बेहतरीन ढंग से काम कर सकते है. इसके अलावा इस समय पार्टी एवं सरकार में मोदी का वर्चस्व रहने की वजह से उन्हें अपनी किसी सहयोगी के पंख कतरने की जरूरत भी नहीं है. हालांकि यह सही है कि, यदि पार्टी के भीतर कोई प्रतिस्पर्धी तैयार होता है, तो उसका प्रस्थापितों द्वारा विरोध किया जाता है. किंतु मौजूदा राजनीति को देखते हुए गडकरी फिलहाल मोदी के खिलाफ प्रतिस्पर्धी के तौर पर खडे रहेंगे, ऐसी कोई संभावना दिखाई नहीं दे रही है. साथ ही उनकी ऐसी कोई मानसिकता भी नहीं है. ऐसे में पीएम मोदी को गडकरी का महत्व कम करने की कोई जरूरत भी नहीं है. बल्कि इस तथ्य को नहीं भूला जाना चाहिए कि, यह मंत्रिमंडल विस्तार अगले वर्ष होनेवाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के साथ-साथ वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए किया गया है और पीएम मोदी का पूरा ध्यान चुनाव को जीतने तथा भाजपा के पास सत्ता बनाये रखने की ओर है. ऐसे में उन्होंने दो अलग-अलग विभागों को गडकरी व राणे इन दो कार्यक्षम लोगों के बीच विभाजीत किया है, ताकि चुनाव में इसका फायदा उठाया जा सके. ऐसे में किसी मंत्री का विभाग हटाने अथवा किसी मंत्री का महत्व कम करने की ओर पीएम मोदी निश्चित ही ध्यान नहीं देंगे. ऐसा राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है.

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