नई दिल्ली/दि.9 – राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पर किसका कब्जा हो, इस हेतु केंद्रीय निर्वाचन आयोग में चल रही सुनवाई कल शुक्रवार को खत्म हो गई. इसके बावजूद भी अगर कुछ कहना है, तो उसे लिखित स्वरुप में रखा जा सकता है, ऐसा बताते हुए निर्वाचन आयोग ने शरद पवार गुट और अजित पवार गुट को 5 दिनों का समय दिया है. इसके बाद निर्वाचन आयोग द्वारा अपना फैसला घोषित किया जाएगा, ऐसी जानकारी सूत्रों के जरिए पता चली है.
गत रोज निर्वाचन आयोग ने अजित पवार गुट की ओर से मुकूल रोहतगी व नीरज कौल ने युक्तिवाद करते हुए कहा कि, शरद पवार गुट द्वारा बार-बार एक ही तरह के मुद्दे उपस्थित करते हुए मामले की सुनवाई को लटकाए रखने का प्रयास किया जा रहा है. जबकि राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में वर्ष 2019 से अंतर्गत विवाद चल रहे है. यह बात पिछली सुनवाई के समय भी कही गई थी और इस बार भी उसका दोबारा उल्लेख किया गया. साथ ही अजित पवार गुट की ओर से यह भी कहा गया कि, शरद पवार द्वारा तानाशाही पद्धति से पार्टी को चलाया जाता था और मनमाने ढंग से पदाधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी. जिसकी वजह से राकांपा में फूट पड गई और इस समय पार्टी के अधिकांश जनप्रतिनिधि व पदाधिकारी हमारे साथ है.
इसके अलावा शरद पवार गुट की ओर से वकालत करने वाले अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि, यद्यपि अजित पवार गुट ने वर्ष 2019 से पार्टी में अंतर्गत कलह रहने का दावा किया है. परंतु इस दावे में कोई तथ्य नहीं है. यदि ऐसा होता, तो अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री का पद नहीं लिया होतातथा उनके साथ रहने वाले लोगों ने जून 2023 तक सत्ता व संगठन में पदों का उपभोग नहीं किया होता. इन सभी लोगों ने केवल सत्ता की लालसा के चलते अन्य दलों के साथ हाथ मिलाया है. इस मामले में सुभाष देसाई प्रकरण का हवाला देते हुए संगठन के पदाधिकारियों की संख्या के आधार पर मामले में फैसला सुनाए जाने की अपील शरद पवार गुट की ओर से निर्वाचन आयोग के समक्ष की गई है.
जहां एक ओर संगठन के संख्याबल के आधार पर मामले का फैसला सुनाए जाने का युक्तिवाद शरद पवार गुट की ओर से किया गया है. वहीं अजित पवार गुट ने विधायकों की संख्या बल के आधार पर फैसला सुनाए जाने की मांग की है. जिसके जवाब में शरद पवार गुट की ओर से कहा गया है कि, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ऐसे कई मामलों में संगठन के संख्याबल को निर्णायक माना गया है.