दिल्ली/दि.30– प्रेम संबंध टूटने के कारण कोई व्यक्ति भावनात्मक रुप से अस्वस्थ हो सकता है. किंतु अपराध करने का उद्देश्य नहीं होने से प्रेम भंग होना आत्महत्या का कारण नहीं हो सकता. इस प्रकार का मत सर्वोच्च न्यायालय ने एक मुकदमें का निर्णय देते हुए व्यक्त किया. सुको ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्णय को रद्द कर अभियुक्त को राहत प्रदान की.
न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति उज्वल भूयान ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि आत्महत्या करने वाली युवती ने अपनी पीछे छोडी दोनों चिठ्ठियों में कहीं भी शारीरिक संबंध के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है. आरोपी ने उसे आत्महत्या के लिए प्रवृत्त करने के बारे में भी साफ नहीं ऐसा लिखा है. इसलिए यह गुन्हा विषयक मुकदमा नहीं हो सकता.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने 21 वर्ष की युवती की आत्महत्या के मामले में कमरुद्दीन को दोषी ठहराया था. युवती की मां ने अगस्त 2007 में आरोप लगाया था कि उनकी बेटी के आरोपी से 8 वर्षो तक प्रेम संबंध थे. विवाह का वचन पूरा नहीं करने से ही बेटी ने आत्महत्या कि इस शिकायत पर पुलिस ने बलात्कार, धोखाधडी, आत्महत्या के लिए विवश करना संबंधी धाराओं के तहत अपराध दर्ज किया. कोर्ट ने आरोपी कमरुद्दीन को 5 वर्ष की जेल और 25 हजार रुपये जुर्माना दिया था. आरोपी ने इस सजा को सर्वोच्च न्यायालय में ललकारा.