भारत-अफगानिस्तान के बीच संबंधों की बहाली के लिए ठोस प्रयास किए जाएं
तालिबान मानव अधिकारों का करेगा सम्मान: जमीयत-उलमा-ए-हिंद
नई दिल्ली/दि. 18 – राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित में शनिवार को जमीयत-उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कार्यकारिणी का एक सम्मेलन आयोजित किया. इस सम्मेलन में देश की मौजूदा परिस्थितियों, अफगानिस्तान की वर्तमान राजनीतिक स्थितियों, समाज सुधार, किसानों आंदोलन और दूसरे महत्वपूर्ण कौमी विषयों पर विस्तार से विचार विमर्श किया गया.
जमीयत-उलमा-ए-हिंद की अध्यक्षता के लिए 21 राज्यों की कार्यकारिणी की तरफ से सहमति वाला मौलाना महमूद असद मदनी के नाम का प्रस्ताव आया, जिसे राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने स्वीकृत किया और अगले टर्न (काल) की अध्यक्षता के लिए मौलाना महमूद मदनी के नाम पर मुहर लगा दी. इस तरह मौलाना मदनी ने प्रस्तावों पर हस्ताक्षर करके अध्यक्ष के पद का कार्य भार संभाला. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के इस सम्मेलन में अफगानिस्तान में होने वाले नए राजनीतिक परिवर्तनों पर विचार विमर्श हुआ.
राष्ट्रीय कार्यकारणी का कहना है कि एक लंबे समय तक विश्व शक्तियों के साथ संघर्ष और असंख्य कुर्बानियों के बाद अपने देश को विदेशी हस्तक्षेप से पवित्र करके सत्ता तक तालिबान पहुंचे हैं. उनसे उम्मीद है कि वह इस्लामी मूल्यों की रोशनी में मानव अधिकारों का सम्मान करते हुए देश के सारे वर्गों के साथ न्याय पूर्ण और मानवीय व्यवहार करेंगे. इसके अलावा क्षेत्र के सारे देशों विशेषकर भारत के साथ संबंधों को मधुर और स्थाई बनाने के हर संभव प्रयास करेंगे और अपनी मातृभूमि को किसी भी देश के विरुद्ध प्रयोग नहीं होने देंगे.
उसने कहा कि स्पष्ट रहे कि पूर्व में अफगानिस्तान के साथ हिंदुस्तान के निकटवर्ती सांस्कृतिक संबंध रहे हैं और नए अफगानिस्तान के निर्माण व उन्नति में हिंदुस्तान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसका जीता जागता प्रमाण अफगानिस्तान पार्लियामेंट की आधुनिक इमारत, देश में चलने वाले प्रगति प्रोग्राम और असंख्य मार्ग हैं. ऐसी परिस्थितियों में उचित यही है कि दोनों देशों के बीच संबंधों की बहाली के लिए गंभीर और ठोस प्रयास जारी रखे जाएं, ताकि पिछले 40 वर्षों से युद्ध व भय के साए में जीवनयापन करने वाले अफगान नागरिक चैन की सांस ले सकें और हर तरह के विदेशी खतरों से सुरक्षित रहें.
किसानों आंदोलन को लेकर मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि लोकतंत्र की शक्ति यह है कि हर एक अपनी मांगों और समस्याओं को उठाने का अधिकार रखता है. किसानों को भी अपने अधिकार के लिए आंदोलन चलाने का मूलभूत व संवैधानिक अधिकार प्राप्त है, लेकिन यह देखा गया है कि वर्तमान सरकार ऐसे आंदोलनों को एड्रेस करने के बजाए उसे कुचलने पर विश्वास रखती है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में उनका यह मूलभूत अधिकार स्वीकार किया है, जिसकी सुरक्षा का कर्तव्य हम सब पर बनता है.