नई दिल्ली/दि.४ – प्लास्टिक और बायोमेडिकल कचरे का संकट कोविड के हर मामले के साथ गहराता जा रहा है जब लाखों लोग फेस शील्ड, सर्जिकल मास्क, दस्ताने और पीपीई सूट इस्तेमाल कर उन्हें फेंक रहे हैं जो कभी मुख्य रूप से अस्पतालों में इस्तेमाल होता है लेकिन अब हर किसी के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं. शनिवार को विश्व पर्यावरण दिवस से पहले चिंतित विशेषज्ञों ने कहा कि प्लास्टिक के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलन को इस वैश्विक महामारी में बड़ा झटका लगा है जहां एकल प्रयोग के प्लास्टिक पर निर्भरता बढ़ रही है और घरों से टन के टन बायोमेडिकल कचरे पैदा हो रहे हैं.
वैश्विक महामारी का कूड़ा हर जगह दिख रहा है – पीपीई सूट अस्पतालों और श्मशान घाटों के पीछे फेंके पड़े हैं, सर्जिकल मास्क और शील्डों को घरों के कूड़े के तौर पर फेंका जा रहा है और निश्चित तौर पर सेनेटाइजर की बोतलें, दस्ताने और इस तरह की चीजें सड़कों के कोने में मौजूद कचरा फेंकने वाली जगहों पर देखने को मिलती हैं. भारत में कचरा निस्तारण प्रणालियों के बेहतर न होने और बड़े पैमाने पर प्लास्टिक का प्रयोग हर दिन बढ़ने के साथ प्लास्टिक कचरे के धरती पर हानिकारक प्रभाव और सुरक्षा को लेकर चिंता भी दिनों-दिन बढ़ रही है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक भारत ने जून 2020 से 10 मई 2021 के बीच 45,038 टन कोविड-19 बायोमेडिकल कूड़ा पैदा किया यानी हर दिन कोविड-19 संबंधी 132 टन कूड़ा पैदा हुआ. यह कोविड-19 से पहले हर दिन उत्पन्न होने वाले 615 टन बायोमेडिकल कूड़े के अलावा है. इसका मतलब है कि केवल वैश्विक महामारी के कारण बायोमेडिकल कूड़ा उत्पन्न होने में 17 प्रतिशत वृद्धि हुई. संक्रमित मरीजों वाले घरों और अस्पतालों से कोविड संबंधित कूड़े के अलावा, गैर कोविड घरों से वैश्विक महामारी के बढ़ावे के कारण निकलने वाला कूड़ा भी है जिसमें न सिर्फ रक्षात्मक उपकरण शामिल हैं बल्कि प्लास्टिक के पैकेट भी शामिल हैं जहां ज्यादा से ज्यादा लोग जरूरी और गैर जरूरी खरीदारी के लिए होम डिलिवरी का इस्तेमाल कर रहे हैं.