नई दिल्ली/दि. 4 – तालिबान सरकार के गठन की तारीख एक बार फिर से एक हफ्ते आगे बढ़ गई है. पहली बार नहीं है जब अफगान सरकार के राज्याभिषेक का मुहूर्त टला हो. 15 अगस्त के बाद से कई बार सरकार बनाने में हो रही देरी पर तालिबान सफाई भी दे चुका है. सबसे पहले अफगानिस्तान से अमेरिका के फुल एंड फाइनल जाने का राग अलापा. अब जब जुमे की नमाज के बाद सरकार के गठन का लोग इंतजार कर रहे थे तो खबर आई कि सरकार का गठन टाल दिया गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों ? तालिबान सरकार बनने में इतनी देरी हो रही है ? क्या संगठन में अभी भी दो फाड़ है. क्या तालिबान-हक्कानी नेटवर्क के गठबंधन में ताल मेल नहीं बैठ पा रहा?
सरकार अफगानिस्तान में बननी है. सरकार तालिबान को बनाना है. सरकार में हक्कानी नेटवर्क को अहम भागीदारी चाहिए. पाकिस्तान तालिबान के हर कदम पर साथ दे रहा है. इन सबके बीच कश्मीर की क्या भागीदारी है ये अहम होता जा रहा है. अफगानिस्तान में सरकार अगर चलाना है तो भारत को दरकिनार नहीं किया जा सकता. सरकार चलाने के लिए भारत की मदद जरूरी है. इसी वजह से तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने पहले भारत के कश्मीर मामले को उसका नीजी मामला बताया. सुहैल शाहीन ने पहले साफ कहा था कि वो कश्मीर के मुद्दे पर कुछ नहीं बोलेगा, लेकिन माना जा रहा है कि पाकिस्तान के दबाव के बाद सुहैल शाहीन ने यूटर्न लेते हुए कश्मीर में रह रहे मुसलमानों के लिए हक उठाने को अपना फर्ज तक बता दिया.
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कश्मीर पर दखल पॉलिसी के खिलाफ
तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन का कश्मीर राग अभी शांत भी नहीं हुआ था कि पाकिस्तान समर्थित हक्कानी नेटवर्क की ओर से कश्मीर को लेकर एक नया बयान आ गया. हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी के भाई अनस हक्कानी ने कहा है कि हक्कानी नेटवर्क भारत के कश्मीर पर कोई दखल नहीं देगा. अनस हक्कानी ने कहा है कि भारत उसके दुश्मनों को 20 सालों से मदद करता आ रहा है, लेकिन वो सबकुछ भूलकर भारत के साथ रिश्तों को आगे बढ़ना चाहते हैं. कश्मीर पर अनस हक्कानी ने कहा कि भारत के कश्मीर पर किसी भी तरह की दखलंदाजी हक्कानी नेटवर्क के पॉलिसी के खिलाफ है. अब ऐसे में ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच सरकार बनाने और उसके एजेंडों को लेकर तालमेल नहीं बैठ पा रहा है. तालिबान और हक्कानी नेटवर्क की भारत को लेकर पॉलिसी में भी मतभेद है.
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भारत के लिए घातक तालिबान-हक्कानी नेटवर्क
अब समझिए आखिर तालिबान सरकार में हक्कानी नेटवर्क की अहमियत क्या है? भारत के लिए हक्कानी नेटवर्क कितना घातक है. दरअसल हक्कानी नेटवर्क पर पाकिस्तान का हाथ है. पाकिस्तान अभी तालिबान के लिए सबसे बड़ा मददगार बना हुआ है. पाकिस्तान तालिबान सरकार में हक्कानी नेटवर्क को बड़ा रोल दिलाकर भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है. इसलिए अभी से जानकार का मानना है कि तालिबान राज में भारत-अफगान रिश्तों में एक बड़ी बाधा हक्कानी नेटवर्क बन सकता है. पाकिस्तान के खिलाफ न तालिबान जा सकता है और न ही हक्कानी नेटवर्क. इसलिए ये भी माना जा रहा है कि कश्मीर मुद्दे पर बहुत जल्द तालिबान की तरह हक्कानी नेटवर्क भी अपने बयान से पलट जाएगा.
हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी ISI का सपोर्ट है. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI तालिबान सरकार में सिराजुद्दीन हक्कानी को अहम रोल दिलाने के लिए लॉबिंग भी कर रही है. इसी सिलसिले में तालिबान सरकार के गठन से पहले ISI चीफ जनरल फैज हमीद काबुल पहुंचे हैं. कुछ जानकारों का मानना है कि सिराजुद्दीन हक्कानी 6 साल से तालिबान का डिप्टी लीडर है. पूर्वी अफगानिस्तान में हक्कानी नेटवर्क का प्रभाव सबसे ज्यादा है. अफगानिस्तान में प्रभावी इस संगठन का बेस पाक की उत्तर-पश्चिम सीमा में है. पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान में हक्कानी नेटवर्क के समानांतर सरकार चलती है. पिछले कुछ सालों में इस संगठन की गतिविधियां काफी बढ़ी हैं. तालिबान लीडरशिप में भी हक्कानी नेटवर्क की उपस्थिति बढ़ी है.