अलाहाबाद/दि.14– हिंदू विवाह यह संस्कार है. 10 रुपए के स्टैम्प पेपर पर अमल में लाए गए एकतरफा घोषणा के आधार पर विवाह भंग नहीं किया जा सकता. इसके लिए हिंदू विवाह कानून के तहत किए गए प्रावधान का पालन करना आवश्यक है, ऐसी टिप्पणी अलाहाबाद हाईकोर्ट ने की. पारिवारिक न्यायालय के 14 साल से विभक्त हुए पत्नी के पालनपोषण देने के पारिवारिक न्यायालय के आदेश के विरोध में कथावाचक पति विनोदकुमार उर्फ संतराम ने दायर की पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया.
* तीसरा विवाह रहने का दावा
2008 में उसने दूसरा विवाह किया. जिससे उसे तीन बेटे हुए. 14 साल बाद दायर की याचिका में उसने 14 साल कोई भी कारण न रहते पति से विभक्त रहते किस स्त्रोत से अपना पालनपोषण किया यह उजागर नहीं किया. पारिवारिक न्यायालय में जांच के दौरान पति ने कहा कि, उसने तीन दफा विवाह किया है. पहला बालविवाह था. बालविवाह का मुकदमा 2002 में समाप्त हुआ.
* पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती
प्रकरण श्रावस्ती जिले का है. पारिवारिक न्यायालय में याचिकाकर्ता पति को प्रतिवादी पत्नी को प्रतिमाह 2200 रुपए भत्ता देने के आदेश दिए थे. इस आदेश को पति ने चुनौती दी और ऐसा युक्तिवाद किया कि, प्रतिवादी पत्नी द्वारा पारिवारिक न्यायालय में दायर की गई पालनपोषण अर्जी में वस्तुस्थिति छिपाई थी.
* पति का युक्तिवाद खारिज
उच्च न्यायालय ने पति के सभी युक्तिवाद खारिज किए. हिंदू विवाह यह संस्कार है, ऐसा न्यायालय ने कहा है. 10 रुपए के स्टैम्प पेपर पर अमल में लाई गई एकतर्फी घोषणा के जरिए उसे विसर्जित नहीं किया जा सकता. इस कारण वर्तमान प्रकरण में याचिकाकर्ता और प्रतिवादी का विवाह रद्द नहीं किया जा सकता. कानूनन तलाक न लेते हुए दूसरी महिला के साथ रहना और उससे तीन संतान होना यह प्रतिवादी के अलग रहने का महत्व का कारण माना जाएगा, ऐसा न्यायालय ने दर्ज किया. इसके अलावा याचिकाकर्ता ने दर्ज किए बालविवाह के कोई भी सबूत न रहने से और इसमें हुए मुकदमे के कारण प्रतिवादी यह उसकी दूसरी पत्नी है, ऐसा कहा नहीं जा सकता, ऐसी टिप्पणी भी न्यायालय ने की.