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वैक्सीन लेने के बाद भी कोविड संक्रमण का खतरा

प्रतिबंधात्मक नियमों की अनदेखी करना पड सकता है भारी

* ‘द लैसेंट’ जर्नल का दावा, धीरे-धीरे घटता है वैक्सीन का असर

नई दिल्ली/दि.30- इस समय कोविड वायरस के खिलाफ जारी लडाई में टीकाकरण को सबसे बडा हथियार माना जा रहा है. किंतु टीकाकरण के बाद भी कोविड प्रतिबंधात्मक नियमों का पालन अनिवार्य है और इसमें किसी तरह की कोई छूट नहीं दी जानी चाहिए. चाहे कोविड प्रतिबंधात्मक वैक्सीन का टीका लगवाया हो अथवा न लगवाया हो, किंतु सोशल डिस्टंसिंग के नियमों का पालन अनिवार्य तौर पर किया जाना चाहिए. क्योेंकि, टीकाकरण की वजह से संपूर्ण सुरक्षा नहीं मिलती है. इस आशय का दावा ‘द लैसेंट’ नामक जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में किया गया है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक टीकाकरण की वजह से कोविड के खिलाफ लडाई में काफी हद तक सहायता मिलती है. किंतु वैक्सीन से संपूर्ण सुरक्षा प्राप्त नहीं होती. करीब एक वर्ष तक किये गये संशोधन से यह स्पष्ट हुआ है कि, जिन लोगों ने कोविड प्रतिबंधात्मक डोस लगवाये है, उनके भी कोविड संक्रमित होने की संभावना 38 फीसद के आसपास है. हालांकि फर्क केवल इतना है कि, इन लोगों को टीकाकरण के बाद संक्रमण की चेपट में आने पर दवाखाने में भरती कराये जाने की जरूरत नहीं पडती. इसके अलावा ‘द लैसेंट’ में यह भी कहा गया है कि, समय बीतने के साथ ही वैक्सीन का प्रभाव भी घटता दिखाई दे रहा है. हालांकि इसके लिए केवल फायजर व एस्ट्राझेनका वैक्सीन का ही अध्ययन किया गया है. जिसमें पाया गया कि, एक माह तक फायजर का 88 फीसद व एस्ट्राझेनका का 77 फीसद प्रभाव रहता है. लेकिन पांच माह के बाद यह प्रभाव क्रमश: 74 व 67 फीसद तक पहुंच जाता है. यानी समय बीतने के साथ ही वैक्सीन का प्रभाव और असर कम होते जाते है.

* कोविड वायरस के म्यूटेशन का खतरा

सितंबर 2020 से सितंबर 2021 के दौरान किये गये संशोधन के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है. इस संशोधन में कुल 440 परिवारों का अध्ययन किया गया. जिसमें पाया गया कि, जिन लोगों ने कोविड प्रतिबंधात्मक वैक्सीन के दोनों डोज लिये है, उनमें संक्रमित होने का खतरा कम था. लेकिन वे पूरी तरह से सुरक्षित भी नहीं थे. वहीं विशेषज्ञों का यह भी कहना रहा कि, कोविड वायरस खुद को म्युटेट करता है और हर बार किसी नये स्वरूप के साथ सामने आता है. ऐसे में फिलहाल दुनिया को कोविड वायरस के खतरे से पूरी तरह से मुक्ति नहीं मिली है.

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