नई दिल्ली/दि.२२– पिछले 7 माह से दुनियाभर के लोग कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहे हैं. कोविड-19 से कोई भी देश अछूता नहीं रहा और अब बीमारी एक मायावी की तरह हर किसी को अपने शिकंजे में जकड़ रही है. कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए हर दिन ही नए तरीके सामने आ रहे हैं. भारत सहित तमाम देशों के वैज्ञानिक इसके बचाव के लिए वैक्सीन पर काम कर रहे हैं.
कोरोना की जंग जीतने के लिए मास्क, फेस कवर, ग्लब्ज और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना आम बात हो गई है लिहाजा अब लोग खुद को इस संक्रमण से बचाने के लिए दूसरे तरीके भी अपना रहे हैं. कोविड-19 के प्रकोप के चलते लंबे समय से एक-दूसरे से दूरियां बनाने वाले लोगों के लिए अब अलग रहना मुश्किल है. इन दिनों लोग बाहर के आवागमन और दफ्तर में काम करने के लिए प्लास्टिक फेश शील्ड का प्रयोग करते दिख रहे हैं. लेकिन यह कोरोना के प्रवेश को नहीं रोक सकता है.
जापानी सुपर कंप्यूटर के एक सिमुलेशन के अनुसार, इन दिनों कोविड-19 से बचने के लिए लोग जिस प्लास्टिक फेस शील्ड को चेहरे पर ढाल बनाकर पहनते हैं वो ऐरोसॉल को पकडऩे में कारगर टूल साबित नहीं हुआ है. यह प्लास्टिक शील्ड कोविड से किसी को भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं रख सकता.
दुनिया के सबसे तेज सुपर कंप्यूटर फुगाकू (Supercomputer Fugaku) ने कोविड-19 के दौरान प्रयोग की जानेवाली प्लास्टिक फेस शील्ड (Plastic face shield) का सिमुलेशन किया है, जिसमें 100 फीसदी एयरबॉर्न ड्रोपलेट्स 5 माइक्रोमीटर से छोटी नजर आईं जो प्लासिटक विजर्स के जरिए भी बच सकती हैं. लिहाजा इससे पता चलता है कि आप इस तरह के ट्रांसपेरेंट नकाबपोश फेश शील्ड से भी कोविड संक्रमण के प्रभाव को कम नहीं कर सकते हैं. बता दें कि एक मीटर के दस लाख वें हिस्से में एक माइक्रोमीटर होता है. एक सरकारी समर्थित शोध संस्थान के अनुसार, 50 से अधिक माइक्रोमीटर वाले लगभग आधे बड़े बूंद भी हवा में भागने में सक्षम थे.
कंप्यूटर विज्ञान के लिए रिकेन के केंद्र में टीम के प्रमुख मोटो त्सुबोकोरा ने गार्जियन को बताया कि फेस शील्ड को मास्क के विकल्प के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, और आगे उन्होंने कहा कि फेस मास्क की तुलना में विजर्स काफी कम कारगर हैं.
मालूम हो कि जापान की कंपनी रिकेन साइंटिफिक रिसर्च सेंटर के फुगाकू सुपर कंप्यूटर की स्पीड काफी तेज है. जो एक सेकेंड में 415 क्वाड्रिलियन की गणना कर सकता है. इसने ये भी पता लगा लिया है कि सांस से कैसे पानी की बूंदें (वॉटर ड्रॉपलेट्स) फैलती हैं. बताया जा रहा है कि ये सुपर कंप्यूटर कोरोना वायरस की वैक्सीन खोजने में भी लगा हुआ है.