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बैंकों को निजीकरण का भय

एआईबीओसी के चेतावनी, बैंकिंग सेवा पहुंचाने में सहयोग बडा

गुवाहाटी/दि.20- समाज की आर्थिक दूरी कम करने में सरकारी बैंकों ने महत्व की भूमिका अदा की है. ऐसा रहते हुए भी सरकारी बैंकों पर निजीकरण का संकट मंडरा रहा है. ऐसी चेतावनी देश के बैंक अधिकारियों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय बैेंक अधिकारी महासंघ (एआईबीओसी) ने दी है.
55वें बैंक राष्ट्रीयीकरण दिन की पूर्व संध्या पर जारी किए गए एक ज्ञापन में महासंघ के महासचिव रुपम रॉय ने कहा कि, वर्ष 1969 के राष्ट्रीयीकरण के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों ने वित्तिय समावेशकता और बचत बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. लेकिन आज इन बैंकों पर निजीकरण का संकट मंडरा रहा है. बडी जनसंख्या का हित देखने वाली ऐसी विचारधारा का समर्थन करना चाहिए, ऐसा भी उन्होंने कहा. राष्ट्रीयीकरण के बाद कृषि, लघु और मध्यम उद्योग, शिक्षा और मूलभूत सुविधा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र के लिए यह बैंक लगातार निधि उपलब्ध कर देती है. आर्थिक विकास, वृद्धि को प्रोत्साहन और लाखों भारतीयों तक बैंकिंग सेवा पहुंचाने में यह बैंक मुख्य आधार रही है. सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों में सरकार सबसे बडी हिस्सेदार है और सरकारी क्षेत्रों के बैंकों के लाभ से मिलनेवाले लाभांश की सरकारी ही सबसे बडी लाभार्थी है.
* 13 प्रतिशत बैंकों के डिपॉजिट में बढोतरी
2 हजार के नोट बंद होने के पश्चात बैंकों में तरलता सर्वोच्च शिखर पर है. जून 2023 में बैंकों के डिपॉजिट में 93 प्रतिशत से बढोतरी हुई है. जो बीते 6 सालों की कालावधि में सर्वाधिक है. आर्थिक तज्ञों के मुताबिक बैंकों में होने वाले डिपॉजिट बढोतरी की ब्याज दर भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. जून और जुलाई माह के इन 15 दिनों में बैंक एफडी में होने वाली बढोतरी भी इस साल में सर्वोच्च है.
* 2.72 लाख करोड बैंक में जमा
– रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकडों के अनुसार 2 हजार के नोट चलन से बंद करने का निर्णय लेने उपरांत 73 प्रतिशत नोट यानी 2.72 लाख करोड रुपए (30 जून) तक बैंकों में वापस आए.
– इसमें से अधिकांश नोट लोगों ने उनके बैंक खाते में जमा किए है. विविध बैंकों से मिली जानकारी के अनुसार वापस आए 2 हजार के 87 प्रतिशत नोट बैंक खातों में जमा किए गए है. वहीं 13 प्रतिशत अन्य मूल्य के नोटो के लिए बदलकर दिए गए है.

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