नई दिल्ली/दि.15 – निर्वाचन आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के जरिए मिले संदेह की रकम का ब्यौरा बुधवार की शाम 5 बजे तक पेश करने हेतु कहा है. जिसका स्मरणपत्र मंगलवार को ही भेजा गया है.
बता दें कि, सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड योजना के तहत 30 सितंबर 2023 तक मिले आर्थिक चंदे का अप्रूडेट डाटा तैयार करने और उसका ब्यौरा बंद लिफाफे में पेश करने का आदेश निर्वाचन आयोग को दिया था. जिसके बाद निर्वाचन आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को यह निर्देश दिया है.
ज्ञात रहे कि, केंद्र सरकार ने वर्ष 2017 के वित्त विधेयक के द्वारा चुनावी बॉन्ड की संकल्पना रखी थी और वर्ष 2018 में इस योजना को अस्तित्व में लाया गया था. इस योजना के जरिए अपना नाम गुप्त रखकर किसी भी राजनीतिक दल को आर्थिक मदद करने की सुविधा उपलब्ध कराई गई है तथा चुनावी बॉन्ड के जरिए किसी भी व्यक्ति को किसी भी राजनीतिक दल के लिए निधि देने की सुविधा दी गई है. परंतु कॉमन कॉज तथा एसोसिएशन ऑफ डेमोके्रटिक रिफार्म (एडीआर) नामक स्वयंसेवी संस्थाओं ने इस योजना की वैधता को चुनौती दी थी. इसके साथ ही राजनीतिक दलों को निधि उपलब्ध करवाने वाली चुनावी बॉन्ड योजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई. इन सभी याचिकाओं पर एकत्रित सुनवाई हुई और सर्वोच्च न्यायालय के 5 न्यायमूर्तियों वाली संविधानपीठ ने 3 नवंबर 2023 को अंतरिम आदेश दिया. चुनावी बॉन्ड योजना की वैधानिकता को लेकन सुनवाई करते हुए डाटा पेश करने के लिए निर्वाचन आयोग को 2 सप्ताह का समय दिया गया था. मुख्य न्यायामूर्ति डी. वाय. चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने 3 दिन की सुनवाई पश्चात इस मामले को लेकर अपना निर्णय सुरक्षित रखा था.
* चुनावी बॉन्ड का विरोध क्योें?
राजनीतिक दलों को मिलने वाली निधि को लेकर परदर्शकता आए. इस हेतु केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड योजना को अमल में लाया था. परंतु इस योजना की वजह से पारदर्शकता की वजह से कई दिक्कतें पैदा हो रही है. ऐसा दावा किया जा रहा है. इसी वजह के चलते सीपीआई (एम) इस राजनीतिक दल सहित कॉमन कॉज व एडीआर नामक स्वयंसेवी संस्थाओं ने इस योजनाओं के खिलाफ याचिका दाखिल की थी. याचिकाकर्ताओं द्वारा कहा गया था कि, दान देने के लिए यह पूरी तरह से अयोग्य पद्धति है तथा किसी भी संस्था के मार्फत अथवा अन्य माध्यम से उस पर नियंत्रण नहीं रखा जा रहा.