नई दिल्ली/दि.१५- उद्योग चैंबर एसोचैम का कहना है कि किसान आंदोलन से देश को हर दिन करीब 3500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. यह नुकसान लॉजिस्टिक लागत बढऩे, श्रमिकों की कमी, टूरिज्म जैसी कई सेवाओं के न खुल पाने आदि के रूप में हो रहा है. एक और उद्योग चैंबर कंफडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज का भी कहना है कि पटरी पर लौट रही अर्थव्यवस्था को किसान आंदोलन से काफी नुकसान हो सकता है.
एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने सरकार और किसानों से इस गतिरोध को दूर करने के लिए कोई रास्ता निकालने की मांग की है. गौरतलब है कि नए कृषि कानूनों को खत्म करने की मांग को लेकर राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर किसान करीब 20 दिन से आंदोलन कर रहे हैं.
एसोचैम का कहना है कि कई राजमार्गों के बाधित होने से माल की आवाजाही के लिए दूसरे वैकल्पिक रास्ते अपनाने पड़ रहे हैं और इससे लॉजिस्टिक लागत में 8 से 10 फीसदी की बढ़त हो सकती है. इसकी वजह से दैनिक उपभोग की कीमतें और बढ़ सकती हैं. एसोचैम का दावा है कि किसान आंदोलन से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश जैसे परस्पर जुड़े आर्थिक क्षेत्रों के लिए व्यापक रूप से नुकसानदेह साबित हो रहा है.
एसोचैम के प्रेसिडेंट डॉ निरंजन हीरानंदानी ने कहा, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की संयुक्त अर्थव्यवस्था करीब 18 लाख करोड़ रुपये की है. किसानों के आंदोलन और सड़क, टोल प्लाजा, रेलवे को रोक देने से इन राज्यों की आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ गयी हैं. मुख्यत: निर्या्त बाजार की जरूरतें पूरी करने वाली कपड़ा, ऑटो कम्पोनेंट, साइकिल, स्पोर्ट्स गुड्स आदि इंडस्ट्री अपने ऑर्डर नहीं पूरे कर पा रहीं. इससे वैश्विक खरीदारों में हमारे भरोसे को नुकसान पहुंच रहा है. दूसरी तरफ एक और इंडस्ट्री चैंबर सीआईआई का भी कहना है कि किसानों के आंदोलन से अगले दिनों में अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा और कोविड से गिरी अर्थव्यवस्था में जो सुधार हो रहा था, इस आंदोलन से उस पर बुरा असर पड़ सकता है. सीआईआई का कहना है कि पहले से ही बाधित सप्लाई चेन पर अब काफी दबाव दिख रहा है, जबकि लॉकडाउन के बाद इसमें सुधार होने लगा था. सीआईआई का कहना है कि पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली-एनसीआर जाने वाले माल को पहुंचने में अब 50 फीसदी ज्यादा समय लग रहा है. इसी तरह हरियाणा, उत्तराखंड और पंजाब से दिल्ली आने वाले यातायात वाहनों को 50 फीसदी ज्यादा दूरी तय कर आने को मजबूर किया जा रहा है.
सीआईआई के निखिल साहनी का कहना है कि इसकी वजह से लॉजिस्टिक लागत 8 से 10 फीसदी तक बढ़ सकती है. इसके अलावा दिल्ली के आसपास के औद्योगिक इलाकों को मजदूरों की कमी से जूझना पड़ रहा है, क्योंकि आसपास के कस्बों से मजदूरों का कारखानों तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है.