“जोक के नाम पर अगर आप किसी की भावनाएं आहत कर रहे हैं तो आप एजेंडा चला रहे हैं”
रणदीप हुड्डा ने मायावती पर साधा निशाना
नई दिल्ली/दि. 30 – हास्य रस का रस तभी तक मीठा लगता है जब तक कि वह किसी दूसरे को कड़वा ना लगे. और अगर आप अपने जोक से कुछ लोगों का मूड बिगाड़ना चाहते हैं तो आप जोक नहीं कर रहे हैं, आप अपने एजेंडे पर काम कर रहे हैं. दरअसल दूसरों की भावनाएं आहत करने के बाद जो लोग माफी मांगते हैं कि उन्हें नहीं पता था कि हमारे इन जोक्स से दूसरों की भावनाएं आहत होंगी वे या तो बहुत भोले बन रहे हैं या तो बीमार हैं. ऐसा कैसे हो सकता है कि खुद को लिबरल, फेमिनिस्ट और प्रगतिशील मानने वालों लोगों से ये गलती हो जाए. ये लिस्ट बहुत लंबी है जिसमें कुछ लोग भूल कर सकते हैं पर अधिकतर लोग ऐसे ही हैं जिनकी वास्तविकता सोशल मीडिया के चलते आज बाहर आ जा रही है. मोबाइल कैमरे और सोशल मीडिया ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है. पर ये बात तो ऐसे लोगों के लिए है जिनके दो चेहरे हैं. पर बॉलीवुड ऐक्टर रणदीप हुड्डा (Bollywood Actor Randeep Hooda) ने आज से 9 साल पहले जो जोक सुनाया था उसकी कहानी तो कुछ और ही बताई जा रही है. कहा जा रहा है कि हाल ही में रिलीज हुई एक वेब सीरिज के प्रमोशन से भी जुड़ा हो सकता है रणदीप हुड्डा का ये जोक. दरअसल आजकल पीआर एजेंसियों के काम बहुत चैलेंजिंग हो गए हैं. जोक के और वेबसीरिज के कंटेंट में जिस तरह की चीजों में एक रूपता देखी जा रही है उससे इस तरह के आरोपों को बल मिल रहा है.
‘एक बार मायावती 2 बच्चों के साथ जा रही होती है. उस वक्त एक आदमी उनसे पूछता है कि क्या ये दोनों बच्चे जुड़वा हैं? तो मायावती (Mayawati) कहती हैं नहीं एक 4 साल का और दूसरा 8 साल का.’ वीडियो में इसके बाद रणदीप हुड्डा कुछ ऐसा कहते हैं जो किसी को भी बुरा लग सकता है. रणदीप हुड्डा ने ये जोक जहां सुनाया वहां की ऑडियंस कोई झुमरी तलैया का नौटंकी देखने वाले की नहीं थी और न तो सड़क छाप किसी छमिया का नाच देखने आई थी. हुड्डा ने जहां जोक सुनाया वहां सोसायटी का इलिट क्लास मौजदू था. वही इलिट क्लास जो नारी अधिकारों, दलितों-शोषितों के समर्थन में भर-भर कर ट्वीट करता है. हुड्डा के जोक पर हंसने वाले लोगों में कोई भी गांव-कस्बे के रस्टिक लोग नहीं हैं जो जातिगत दिवारों में आज भी बंटे हुए हैं. रणदीप हुड्डा जिन्हें ये जोक सुनाकर आनंदित हो रहे थे वो लोग गांव-कस्बे के कम पढ़े लिखे सामंती समाज के लोग नहीं थे जो औरत को अपने पांव की जूती समझते हैं. दरअसल ये ही समाज की हिपोक्रेसी है कि जो हम हैं वो हम दिखाना नहीं चाहते. हमारी पोल तभी खुलती है जब कोई वारदात हो जाती है. बहुत सी बातें दब जाती हैं या दबा दी जाती है फिर भी सीसीटीवी के कैमरे , मोबाइल पर गुपचुप तरीके शूट हुई फिल्में ऐसे लोगों की हकीकत खोल ही देती हैं.
रणदीप हुड्डा को जोक सुनाते जिन लोगों ने वीडियो क्लिप देखा होगा उनके दिमाग एक बात यह जरूर आती है कि इतना पुराना विडियो जारी करने का कया कोई मकसद रहा होगा. 2012 के इस विडियो के बारे में बताया जा रहा है कि सोशल मीडिया पर इसे लाने इसका पूरा श्रेय अगाथा सृष्टि नाम की एक ट्विटर यूजर का है. हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि ये सब जानबूझकर एक योजना के तहत किया गया है. दरअसल ऐसा इसलिए सोचा जा रहा है क्योंकि रणदीप हुड्डा की एक वेबसीरीज महारानी नाम से इसी हफ्ते रिलीज हुई है. जिसमें एक पिछड़ी जाति की महिला अपने प्रदेश की मुख्यमंत्री बनती है. अगर इस वेब सीरिज के प्रमोशन के लिए ये हरकत की गई तो यह दोहरा अपराध है. समाज और कानून को चाहिए कि कुछ ऐसा करे कि इस तरह की हरकत दुबारा न हो. संयुक्त राष्ट्र के संगठन ने बिना देर किए अपने एक संगठन के एंबेस्डर के पद से जिस तरह हुड्डा को हटाकर एक्शन लिया है, कुछ इसी तरह के एक्शन की उम्मीद बॉलीवुड और महाराष्ट्र सरकार से होनी चाहिए.
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लालू-मोदी-राहुल-केजरीवाल के जोक भी एजेंडे के तहत बनाए जा रहे हैं
आरजेडी नेता लालू यादव के नाम पर जितने जोक बने होंगे शायद देश में किसी दूसरे नेता के नाम पर नहीं बने होंगे. ऐसे जोक्स के माध्यम से यह साबित किया जाता रहा है कि लालू यादव के पास अक्ल की कमी है. एक ऐसा शख्स जो मुख्यमंत्री, रेल मंत्री जैसे पदों को सुशोभित किया हो, लाखों-करोड़ों लोग जिसे मसीहा मानते हो उसे हम बार-बार जोक्स में बेवकूफ सुनते-सुनते उसके बारे में ऐसी राय बना सकते हैं. कहा जाता है कि बचपन में हाथी के पैर में जंजीर लगी होती है वो उसे तोड़ने की कोशिश करता है पर कभी तोड़ने में सफल नहीं होता है. हाथी के बड़े होने पर दिमाग में ऐसा केमिकल लोचा तैयार मिलता है कि वह जिंदगी भर समझता है कि उसके पैर में बेड़ियां हैं और वो कभी उसे तोड़ने की कोशिश नहीं करता है.
इस तरह के जोक्स के पीछे शायद ये रणनीति भी काम करती है. कांग्रेस नेता को राहुल गांधी के जोक्स भी बहुत चलते हैं जिसमें उन्हें पप्पू साबित किया जाता है. ठीक वैसा ही इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी किया जा रहा है. प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ भी ऐसे जोक्स बनाए जा रहे हैं जिन्हें कहीं से भी आप जायज नहीं ठहरा सकते हैं. ये हमारे लोकतंत्र की अच्छी बात रही है है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इस तरह के जोक्स पर कभी देश में रोक नहीं लगाने की बात नहीं हुई. दरअसल यही लोकतंत्र है कि आपको भी अधिकार है कि आप दूसरों के बारे में ऐसे ही जोक्स सुनाकर उसके बारे में जनता को ऐसी राय बनाने के लिए तैयार कर सकते हैं.