नई दिल्ली/दि. 18 – पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा है कि लिव-इन संबंध ‘नैतिक और सामाजिक रूप से अस्वीकार्य’ है. हालाँकि देश की सबसे बड़ी अदालत ने अपने कई आदेशों में लिव-इन में रह रहे जोड़ों के रिश्तों का मान्यता दी है. जस्टिस एचएस मदान ने 11 मई को दिए इस आदेश में याचिकाकर्ता को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था. याचिका दायर करने वाले जोड़े ने कोर्ट से कहा था कि वे एक साथ रह रहे हैं और भविष्य में शादी करने का इरादा रखते हैं लेकिन लड़की के परिवार की ओर से उनकी ज़िंदगी को ख़तरा है. इस मामले में लड़की की उम्र 19 साल है और लड़का 22 साल का है. याचिका में उन्होंने हाई कोर्ट से आग्रह किया था कि उनकी सुरक्षा के लिए पंजाब पुलिस और तरनतारन ज़िला पुलिस को निर्देश जारी किए जाएँ.
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कोर्ट ने क्या कहा
जस्टिस मदान ने कहा, “वास्तव में याचिकाकर्ता इस पिटीशन की आड़ लेकर अपने लिव-इन रिश्तों पर मंजूरी की मुहर लगवाना चाह रहे हैं. ये नैतिक और सामाजिक रूप से अस्वीकार है.” अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि दोनों को सुरक्षा देने का आदेश नहीं दिया जा सकता है. इस जोड़े के वकील जेएस ठाकुर ने बीबीसी को बताया कि वे जल्द ही इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे. विवाहित जोड़ों के लिए देश की उच्च न्यायालयों में सुरक्षा के लिए आवेदन करना आम बात है. पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में भी ऐसे कई मामले आते रहते है और अदालत आमतौर पर पुलिस और सरकार को ऐसे जोड़ों को सुरक्षा प्रदान करती रही है. हाल के दिनों में लिव-इन कपल के मामले भी कोर्ट में आने लगे हैं.
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शादी करने का फैसला
आवेदन दायर करने वाली महिला उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की रहने वाली है, हालांकि परिवार अब लुधियाना में रहता है जबकि पुरुष सीमावर्ती जिले तरनतारन का निवासी है.अदालत में उनकी याचिका के अनुसार, कपल ने कहा कि वे दोनों वयस्क हैं और चार साल से प्यार में हैं. उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने भविष्य में एक-दूसरे से शादी करने का फैसला किया है. उनकी याचिका में कहा गया है कि वह एक कारपेंटर हैं और 15,000 रुपए प्रति माह कमाते हैं. दोनों लोग महिला के परिवार को शादी के लिए मनाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन वे कथित तौर पर रिश्ते का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि दोनों की जाति अलग है. एडवोकेट जेएस ठाकुर ने बताया कि उनकी शादी इसलिए नहीं हो सकी क्योंकि लड़की की उम्र से जुड़े दस्तावेज़ उसके परिवारवालों के कब्ज़े में है.
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सुप्रीम कोर्ट का नजरिया
अतीत में सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर अलग-अलग नजरिया अपनाया है. मई, 2018 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की एक बेंच ने ये फैसला दिया था कि एक वयस्क जोड़े को बिना शादी के भी एक दूसरे के साथ रहने का अधिकार है. केरल की 20 साल की एक लड़की के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ़ किया था कि वो जिसके साथ रहना चाहे, रह सकती हैं. हालांकि उस लड़की की शादी खारिज कर दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि लिव-इन रिश्तों को अब क़ानून में स्वीकार किया गया है. साल 2005 के घरेलू हिंसा निवारण क़ानून में लिव-इन में रह रहीं महिलाओं को भी संरक्षण हासिल है. अभिनेत्री खुशबू की याचिका पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में कहा था कि लिव-इन रिश्ते मुनासिब हैं और दो बालिग लोगों का एक साथ रहना अवैध नहीं कहा जा सकता है. कोर्ट ने कहा था, “ये सच है कि हमारे समाज की मुख्यधारा के नजरिये के मुताबिक़ यौन संबंध केवल शादीशुदा जोड़ों के बीच होना चाहिए. लेकिन आईपीसी की धारा 497 के तहत व्याभिचार के अपवाद को छोड़कर बिना विवाह किए स्वेच्छा से यौन संबंध कानून की नज़र में कोई अपराध नहीं है.” लता सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश के केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस आदेश का हवाला दिया था. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “दो बालिग लोगों का अपनी मर्जी से लिव-इन रिश्तों में एक साथ रहना अपराध नहीं है. भले ही कोई इसे अनैतिक समझे. व्याभिचार का प्रावधान इसका अपवाद है. एक बालिग लड़की जिससे चाहे, उसके साथ शादी कर सकती है या जिसे पसंद करे, उसके साथ रह सकती है.” कोर्ट ने कहा, “सामाजिक नैतिकता की मान्यता अलग-अलग लोगों के अलग-अलग है और आपराधिक न्याय किसी निजी आज़ादी में दखल देने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. नैतिकता और अपराध ऐसी चीज़ें नहीं हैं जिनका दायरा एक ही हो.” साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा सरमा बनाम वीकेवी सरमा के मामले में कहा था, “लिव-इन या शादी जैसे रिश्ते न तो अपराध हैं और न ही पाप, भले ही इस देश में समाज इसे स्वीकार न करता हो.”