नीरव मोदी के भारत प्रत्यर्पण पर लंदन की अदालत ने सुनाया फैसला
14000 करोड़ के पीएनबी घोटाले में थे शामिल
लंदन/दि.२५– पंजाब नेशनल बैंक से करीब दो अरब डॉलर की धोखाधड़ी के मामले में वांछित हीरा कारोबारी 49 वर्षीय नीरव मोदी के भारत प्रत्यर्पण पर आज (गुरुवार) लंदन की एक अदालत फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि सबूतों के आधार पर नीरव मोदी को दोषी ठहराया जा सकता है. वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट की अदालत में जिला न्यायाधीश सैमुअल गूजी ने कहा कि नीरव मोदी और बैंक के अधिकारियों सहित अन्य लोगों के बीच स्पष्ट रूप से संबंध थे. न्यायाधीश ने कहा, नीरव मोदी ने बाद में व्यक्तिगत रूप से PNB को कर्ज स्वीकार करने और कर्ज चुकाने का वादा करते हुए लिखा था. सीबीआई इस बात की जांच कर रही है कि नीरव मोदी की फर्म डमी पार्टनर थीं. उन्होंने कहा कि ये कंपनियां नीरव मोदी द्वारा संचालित शैडो कंपनीज़ थीं. अदालत ने कहा कि 14,000 करोड़ के पीएनबी घोटाले में वांछित नीरव मोदी को भारत प्रत्यर्पित किया जा सकता है.
मामले की सुनवाई के दौरान जज ने कहा, मुझे यह स्वीकार नहीं है कि नीरव मोदी वैध व्यवसाय में शामिल था. मुझे कोई वास्तविक लेनदेन नहीं मिला और विश्वास है कि यह बेईमानी की प्रक्रिया है. जज ने कहा कि जिस तरह से लेटर ऑफ अंडरटेकिंग हासिल की गई थी, संयोजन पूरी तरह से हमें इस निष्कर्ष पर ले जाता है कि नीरव मोदी और अन्य लोग धोखाधड़ी कर रहे थे.
जज ने आगे कहा, इनमें से कई भारत में मुकदमे के लिए एक मामला है. मैं फिर से संतुष्ट हूं कि इस बात के सबूत हैं कि उन्हें दोषी ठहराया जा सकता है. प्रथम दृष्टया यह मनी लॉन्ड्रिंग का मामला है. नीरव मोदी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में पेश किया गया. न्यायाधीश ने कहा कि उन्हें भारत से 16 प्रमाण मिले हैं और वह भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत दलीलों को स्वीकार करते हैं.
जज ने नीरव मोदी के वकील द्वारा उस दावे को खारिज किया कि कोरोना महामारी के दौरान उनकी दिमागी हालत खराब होती चली गई. जज ने मोदी के वकील द्वारा भारतीय जेलों की दशा को लेकर दिए तर्क को भी खारिज किया. न्यायाधीश ने कहा, मुझे संतोष है कि भारत में नीरव मोदी का प्रत्यर्पण मानवाधिकारों के अनुपालन में है. इस बात का कोई सबूत नहीं है कि अगर नीरव मोदी को भारत प्रत्यर्पित किया जाता है तो उसे न्याय नहीं मिलेगा.
नीरव मोदी को प्रत्यर्पण वारंट पर 19 मार्च 2019 को गिरफ्तार किया गया था और प्रत्यर्पण मामले के सिलसिले में हुई कई सुनवाइयों के दौरान वह वॉन्ड्सवर्थ जेल से वीडियो लिंक के जरिये शामिल हुआ था. जमानत को लेकर उसके कई प्रयास मजिस्ट्रेट अदालत और उच्च न्यायालय में खारिज हो चुके हैं क्योंकि उसके फरार होने का जोखिम है. नीरव भारत में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दर्ज मामलों के तहत आपराधिक कार्यवाही का सामना करना होगा. इसमें से एक में केंद्रीय जांच ब्यूरो का मामला पीएनबी में गैरकानूनी पत्र या ऋण समझौते के जरिए बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी से संबंधित है. दूसरी कार्रवाई प्रवर्तन निदेशालय की हैं. यह मामला लॉन्ड्रिंग और धोखाधड़ी का है. उस पर सबूतों से छेड़छाड़ और गवाहों को धमकाने के दो अतिरिक्त आरोप भी लगे हैं, जो कि सीबीआई के मामले में जोड़े गए हैं. क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस ने भारत सरकार की ओर से बहस करते हुए उसके खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की है. यह भी साफ किया गया है कि भारत में उसके प्रत्यर्पण को रोकने वाले कोई मानवाधिकार के मुद्दे नहीं हैं. सीपीएस के बैरिस्टर हेलेन मैल्कम ने तर्क दिया है कि ज्वैलर ने पोंजी जैसी योजना चलाई थी, जिसमें पुराने को चुकाने के लिए नए गैरकानूनी पत्र का इस्तेमाल किया गया था. पोंजी योजना को आम तौर पर एक निवेश घोटाले के रूप में जाना जाता है, जिसमें बाद के निवेशकों से लिए गए पैसे से पुराने निवेशकों के लिए राशि जुटाई जाती है.
सीपीएस ने दावा किया है कि नीरव मोदी ने पीएनबी बैंक अधिकारियों के साथ साजिश करके गैरकानूनी पत्रों का फर्जी उपयोग करने के लिए अपनी फर्मों- डायमंड्स आर अस, सोलर एक्सपोर्ट्स और स्टेलर डायमंड्स का इस्तेमाल किया. सीपीएस ने भारतीय जांच अधिकारियों की पहुंच से बाहर रहने के लिए अपनी कंपनियों के डमी अधिकारियों को डराने-धमकाने में नीरव मोदी की भागीदारी के सबूत के रूप में अदालत में वीडियो भी चलाए.
बैरिस्टर क्लेयर मोंटगोमरी की अगुवाई वाले नीरव मोदी के बचाव पक्ष ने दावा किया है कि यह पूरा मामला एक वाणिज्यिक विवाद है. यह भी दावा किया गया है कि उनका कोई भी कार्य कानूनी सीमा से परे नहीं है और धोखाधड़ी नहीं है. बचाव पक्ष ने नीरव मोदी के मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में भी तर्क दिए हैं.
पिछले साल और इस साल की शुरुआत में नीरव मोदी के प्रत्यर्पण के मामले की सुनवाई के दौरान वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट ने दोनों पक्षों के विस्तृत तर्क सुने. इस दौरान नीरव मोदी की बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति को लेकर भी दोनों पक्षों की तरफ से तर्क दिए गए. इसमें प्रत्यर्पण अधिनियम 2003 धारा 91 की सीमा को लेकर तर्क दिए गए जिसका उपयोग हाल ही में ब्रिटेन में विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे के प्रत्यर्पण को रोकने के लिए किया गया था.