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शिवसेना के नाम-निशान पर हक को लेकर चली लंबी बहस

तीन घंटे तक चली सुनवाई, उद्धव की पक्ष प्रमुख पद पर नियुक्ति गैरकानूनी

नई दिल्ली दि. ११– शिवसेना के नाम और निशान पर अधिकार को लेकर चुनाव आयोग में मंगलवार को लंबी बहस चली. करीब तीन घंटे तक चली सुनवाई में एकनाथ शिंदे गुट की ओर से पक्ष रखा गया. इस दौरान शिंदे गुट के वकील महेश जेठमलानी ने अपनी दलील में उद्धव ठाकरे की शिवसेना पक्ष प्रमुख पद नियुक्ति को गैरकानूनी करार देते हुए एकनाथ शिंदे की जुलाई २०२२ में नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मुख्य नेता के तौर पर की गई नियुक्ति को जायज बताया. सुनवाई के बाद जेठमलानी ने मीडिया से बातचीत में उद्धव द्वारा २०१८ में पार्टी के संविधान में किए गए बदलाव को फ्रॉड बताते हुए कहा, शिवसेना संस्थापक दिवंगत बालासाहब ठाकरे द्वारा १९९९ में बनाई गई शिवसेना का संविधान लोकतांत्रिक था. उद्धव ने २०१८ में गुप्त रुप से संविधानात्मक नियुक्तियां रद्द की और सभी अधिकार अपने हक में लिए, जो धोखाधडी है. पार्टी प्र्रमुख पद पर उनकी नियुक्ति भी गैरकानूनी है. उन्होंने कहा कि, पार्टी प्रमुख गलत है, लेकिन पार्टी प्रमुख के आदेश से जो नियुक्तियां की गई, वे गलत है. जेठमलानी ने बताया कि, शिंदे गुट के पास मौजूद बहुमत और संगठनात्मक ताकत को भी हमने आयोग के समक्ष सिद्ध किया है. चुनाव आयोग के सामने ठाकरे गुट की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा. उन्होंने जेठमलानी के दावे को गलत बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले आयोग द्वारा इस मामले में फैसला नहीं सुनाए जाने का आग्रह किया.
* अब १४ फरवरी को सुनवाई
शिवसेना में विभाजन से उत्पन्न संवैधानिक मुद्दों से संबंधित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई फिर टल गई. मामले पर अब १४ फरवरी को सुनवाई होगी. शीर्ष अदालत अब इस सुनवाई से तय करेगी कि इस मामले को सात न्यायाधीशें की खंडपीठ को भेजना है या नहीं.

 

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