अगले महीने हो सकते हैं मनपा चुनाव!
ओबीसी आरक्षण के बिना ही चुनाव करवाने का ‘सुप्रीम’ आदेश
* दो सप्ताह के भीतर पालिका चुनाव की घोषणा करने को लेकर दिया निर्देश
* अब चुनाव के लिए अक्तूबर माह तक नहीं करना होगा इंतजार
* सरकार सहित राजनीतिक दलों के सामने पैदा हुआ पेंच
* अब सभी की निगाहें सरकार के फैसले पर
नई दिल्ली/दि.4– ओबीसी आरक्षण के मसले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा महाराष्ट्र सरकार को आज एक बार फिर बडा झटका दिया गया है. इस मसले को लेकर आज हुई अंतिम सुनवाई के बाद कोर्ट ने बेहद महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार से कहा कि, आगामी दो सप्ताह के भीतर स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव की तारीखें घोषित की जाये. इस फैसले को राज्य सरकार के साथ-साथ ओबीसी समुदाय के लिए भी काफी बडा झटका माना जा रहा है. साथ ही कोर्ट के फैसले के चलते अब जल्द ही ओबीसी आरक्षण के बिना स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव करवाये जाने की घोषणा की जा सकती है. जिसका सीधा मतलब है कि, अब महानगरपालिका, नगरपालिका, जिला परिषद, नगर पंचायत व पंचायत समिती सहित ग्रामपंचायतों के चुनाव जल्द ही करवाये जायेंगे और इसके लिए अब अक्तूबर माह का इंतजार नहीं करना होगा. ऐसे में कोर्ट के फैसले के पश्चात ओबीसी संवर्ग के उम्मीदवारों को लेकर राजनीतिक दलों द्वारा क्या रणनीति अपनायी जाती है, इस ओर सभी का ध्यान लगा हुआ है.
बता दें कि, सर्वोच्च न्यायालय में ओबीसी आरक्षण को लेकर विकास गवली द्वारा याचिका दाखिल की गई थी. जिस पर दोनों पक्षों की ओर से युक्तिवाद किया गया. जिसके पश्चात कोर्ट द्वारा अपना फैसला सुनाया गया. ज्ञात रहें कि, स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं में ओबीसी आरक्षण को टिकाये रखने हेतु राज्य सरकारने डेटा संकलित करने का काम शुरू किया था. साथ ही स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं में प्रभाग रचना व परिसिमन से संबंधित अधिकार भी राज्य सरकार ने अपने पास लिये थे. वहीं इस मामले को लेकर सरकार की भूमिका का विपक्षी दलों ने भी समर्थन किया था और ओबीसी आरक्षण के लेकर सर्वदलिय सहमति बनी थी. ऐसे में अब कोर्ट द्वारा दिये गये निर्णय के पश्चात सभी राजनीतिक दलों के सामने बडा राजनीतिक पेंच उपस्थित हो गया है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये फैसले के चलते यह स्पष्ट हो गया है कि, अब स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव ओबीसी आरक्षण के बिना ही होंगे. ऐसे में पहले आरक्षित रहनेवाले निर्वाचन क्षेत्रोें में ओबीसी संवर्ग को प्रतिनिधित्व देने अथवा ओबीसी आरक्षण के प्रमाण में ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट देने का पर्याय राजनीतिक दलों के सामने है. किंतु खुले संवर्ग की सीटटों पर ओबीसी उम्मीदवारी दिये जाने पर वहां ओबीसी प्रत्याशी प्रतिस्पर्धा में कैसे टिक पायेंगे, यह अभी से बताना थोडा मुश्किल है. ऐसे में अब राजनीतिक दलों द्वारा इस मामले को लेकर क्या निर्णय लिया जाता है, इस ओर सभी का ध्यान लगा हुआ है.
* पहले कोरोना व फिर आरक्षण के चलते टले चुनाव
उल्लेखनीय है कि, वर्ष 2020 से देश सहित पूरी दुनिया में कोविड संक्रमण की महामारी का संकट मंडरा रहा था और प्रतिबंधात्मक नियम लागू रहने के चलते चुनाव प्रचार, मतदान व गतगणना जैसी प्रक्रियाएं पूर्ण करना संभव नहीं था. ऐसे में मार्च 2020 के बाद जिन-जिन महानगरपालिकाओं व जिला परिषदों के चुनाव होने थे, उन्हें प्रलंबित रखा गया. यह स्थिति जून 2021 तक कायम रही. जिसके बाद हालात सामान्य होते ही स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव को लेकर गहमागहमी तेज होने लगी. किंतु इससे पहले ही मार्च 2021 में सर्वोेच्च न्यायालय ने ओबीसी संवर्ग के राजनीतिक आरक्षण को रद्द करने का महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. जिसके चलते राज्य की कई जिला परिषदों के चुनाव व उपचुनाव का नये सिरे से नियोजन राज्य सरकार को करना पडा और अब कार्यकाल खत्म हो चुकी स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव अधर में लटके हुए है. साथ ही सभी स्थानीय स्वायत्त संस्थाओें में प्रशासक राज शुरू हो गया है.
* राज्य सरकार पर फूट रहा नाकामी का ठिकरा
ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा विगत लंबे समय से अपनायी गई भूमिका एवं आज सुनाये गये फैसले के चलते अब राज्य सरकार पर नाकामी का ठिकरा फूट रहा है और विपक्ष द्वारा इस मामले को लेकर सरकार को चौतरफा घेरा जा रहा है.
उल्लेखनीय है कि, ओबीसी आरक्षण के लिए उपलब्ध जानकारी के आधार पर इम्पिरिकल डेटा पेश करने का आदेश सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया था. जिसके लिए राज्य सरकार ने राज्य पिछडावर्गीय आयोग को अधिकार भी प्रदान किये. परंतू यह डेटा अब तक अदालत में पेश हुआ है अथवा नहीं, इसे लेकर कोई जानकारी सामने नहीं आयी है.
* 25 मई से पहले हो सकती है चुनाव की घोषणा, जून माह के अंत तक हो सकते है चुनाव
ज्ञात रहें कि, महानगरपालिकाओं द्वारा वर्ष 2021 में तैयार की गई प्रभाग रचना को जारी वर्ष के दौरान राज्य सरकार द्वारा चुनाव संबंधी सभी अधिकार अपने हाथ में लेते हुए रद्द कर दिया गया था और नई प्रभाग रचना अब तक घोषित नहीं हुई है. नई प्रभाग रचना घोषित होने के बाद उस पर आपत्ति व आक्षेप मंगाने तथा त्रृटियों को दूर कर अंतिम प्रभाग रचना घोषित करने में कम से कम दो सप्ताह का समय लगेगा और अदालत द्वारा भी चुनावी अधिसूचना घोषित करने के लिए दो सप्ताह का ही समय दिया गया है. ऐसे में इस दौरान अंतिम प्रभाग रचना व अंतिम मतदाता सूची की प्रक्रिया पूर्ण करते हुए राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा 25 मई से पहले चुनाव की घोषणा की जा सकती है. जिसके बाद प्रचार के लिए तीन से चार सप्ताह का समय मिल सकता है और मई माह के अंत तक मतदान की प्रक्रिया पूर्ण करवाते हुए सभी स्थानीय स्वायत्त संस्थाओ में जननिर्वाचित व्यवस्था अस्तित्व में आ सकती है.