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मुस्लिम महिलाओं को तलाक का अधिकार

हाईकोर्ट के निर्णय पर आपत्ति

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का विरोध
लखनऊ – /दि.7 मुस्लिम महिला को अपने पति के अनुमति के बिना तलाक लेने का अधिकार हैं. ऐसा निर्णय केरल हाईकोर्ट ने लिया था. इस निर्णय को लेकर अब विवाद शुरु हो गया हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस पर आपत्ति जताई हैं. हाईकोर्ट ने विशेष प्रकरण में शरीया के प्रावधान का अर्थ नहीं लगाया, लेकिन उस पर कानून बनाने का प्रयास किया ऐसा आरोप करते हुए बोर्ड को यह आदेश स्वीकार न रहने की बात महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कही हैं. मुस्लिम विवाह कानून 1939 अंतर्गत पत्नी को दिए तलाक को चुनौती देने वाली पति की दोबारा विचार करने वाली याचिका केरल हाईकोर्ट ने खारिज की थी.

चार पर्याय
एक तीन तलाक हैं, जिसमें पति को तलाक देने का अधिकार हैं.
खुला पर्याय- जहां तलाक पत्नी की तरफ से लिया जाता है और पति व्दारा स्वीकारें जाने के बाद लागू होता हैं.
तलाक-ए-तफवीज (प्रतिनिधि तलाक) जिसके तहत भावी पत्नी व्दारा निकाहनामा में (विवाह करार) दर्ज किया हैं, की यदि वह उसके साथ अमानवीय व्यवहार करता होगा, मानसिक व शारीरिक अत्याचार करता होगा अथवा उसे वश में करने का प्रयास करता होगा तब पति की सहमती के बिना तलाक लेने को पात्र हैं.
चौथा पर्याय यानी काझी और न्यायालय के सामने तलाक की प्रक्रिया.

निरिक्षण
न्या. ए. मोहम्मद मुश्ताक और सी.डी. डायस की खंडपीठ ने विवाह रद्द करना यह मुस्लिम पत्नी का अधिकार हैं. यह निर्णय कुरान के मुताबिक है और उसके पति के निर्णय का स्वीकार अथवा इन्कार का निर्णय प्रभावित नहीं हो सकता.
कानून के मुद्दों पर कोई भी कानूनी प्रशिक्षण न रहने वाले इस्लामी धर्मगुरु के विचारों को नहीं स्वीकारा जाएगा.
जिसमें कोई संदेह नहीं की श्रद्धा और आचरण से संबंधित बातों में उनकी राय न्यायालय के लिए महत्वपूर्ण है और न्यायालय व्दारा उनकी राय का सम्मान करना चाहिए.

शरीया में तलाक की दूसरी पद्धत नहीं हैं. इस्लामिक न्यायशास्त्र के संबंध में तलाक के प्रावधान का अर्थ लगाने के लिए केरल हाईकोर्ट ने संक्षिप्त वर्णन किया हैं.
– मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी, महासचिव एआयएमपीएलबी

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