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संपादकीय संचालक पर बदनामी का मुकदमा नहीं

अखबारों को सावधानी बरतना आवश्यक

* सुप्रीम कोर्ट ने मानहानी का मुकदमा रद्द किया
नई दिल्ली /दि.21 – संपादकीय संचालक खबरों का चयन और प्रकाशन करता है, ऐसा माना नहीं जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कहते हुए एक अंग्रेजी अखबार के खिलाफ जारी मानहानि का मुकदमा रद्द किया.
2014 में मेसर्स बीड एण्ड हेमर ऑक्शनियर्स प्रा. लि. ने 14 लोगों के खिलाफ बदनामी का मुकदमा दायर किया. बंगलुरु में निलामी के लिए फर्जी कलाकृति रखी जाने से संबंधित खबर की श्रृंखला चलाये जाने पर यह मुकदमा दायर किया गया था. न्यायमूर्ति जे. वी. परडीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन ने संपादकीय संचालक का काम प्रशासकीय स्वरुप का है. ठोस सबूत के बगैर खबरों के चयन के लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं माना जा सकता, ऐसा कहा. खबर प्रकाशित करने का मकसद बदनामी का नहीं था और दंडाधिकारी ने गलत कार्यप्रणाली अवलंबित की. इस कारण संवाददाता और संपादक पर दायर किया मुकदमा सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया.

* अखबार को सूचना
– अखबार के प्रमुख पदाधिकारियों ने कोई भी वक्तव्य, खबर अथवा राय प्रकाशित करने के पूर्व काफी सावधानी बरतनी चाहिए.
– मीडिया में सार्वजनिक भावनाओं पर प्रभाव डालने की और विलक्षण गति से नीति बदलने की क्षमता रहती है. तलवार से भी कलम बलवान है.
– एक लेख लाखों लोगों के विश्वास को और निर्णय को आकार दे सकता है. इसमें किसी की प्रतिष्ठा को गंभीर हानि पहुंचाने की क्षमता रहती है. इसका प्रतिपादन दुरुगामी रह सकता है.
– मीडिया रिपेार्टिंग में अचुकता और निष्पक्षता आवश्यक है. विशेष रुप से व्यक्ति अथवा संस्थापक परिणाम करने की क्षमता रहने वाली घटना संभालते समय वृत्त-लेख का प्रकाशन सार्वजनिक हित के लिए और सद्भावना के लिए करना चाहिए.

* सर्वसाधारण विधान पर कार्रवाई नहीं- सुप्रीम कोर्ट
संपादकीय संचालक के खबर के चयन पर नियंत्रण है. इस सर्वसाधारण वक्तव्य पर कार्रवाई नहीं हो सकती. शिकायतकर्ता ने यह सिद्ध करना चाहिए कि, खबर के कारण उसकी प्रतिष्ठा कम हुई. वृत्तपत्र की प्रिंट लाइन में जिनके नाम है, ऐसे प्रत्येक को खबर का चयन और प्रकाशन में शामिल नहीं माना जा सकता. आरोपी मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र के बाहर रहता होगा, तो समन्स निकालने के पूर्व जांच करना दंडाधिकारी के लिए अनिवार्य है, ऐसा कोर्ट ने कहा.

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