नई दिल्ली/दि.4 – उत्तराखंड में अगले मुख्यमंत्री के लिए पुष्कर सिंह धामी को नामित किया गया, जिसके बाद उन्होंने रविवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. शपथ ग्रहण समारोह देहरादून के राजभवन में आयोजित किया गया. धामी को राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई. पैंतालीस वर्षीय धामी उत्तराखंड के अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं. करीब 10 मिनट देर से आरंभ हुए शपथ ग्रहण समारोह में धामी के अलावा 11 मंत्रियों ने भी शपथ ली. मंत्रिमंडल में सभी पुराने चेहरों को बरकरार रखा गया है और एकमात्र परिवर्तन यही किया गया है कि सभी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है. धामी मंत्रिमंडल में कोई भी राज्य मंत्री नहीं है. त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत मंत्रिमंडल की तरह ही पुष्कर मंत्रिमंडल में भी सतपाल महाराज को नंबर दो पर रखा गया है. अन्य मंत्रियों में डॉ. हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल, यशपाल आर्य, बिशन सिंह चुफाल, बंशीधर भगत, रेखा आर्य, स्वामी यतीश्वरानंद, अरविंद पाण्डेय, गणेश जोशी और धनसिंह रावत शामिल हैं. धामी मंत्रिमंडल में रेखा आर्य, धनसिंह रावत और यतीश्वरानंद का कद बढ़ाया गया है. पिछले मंत्रिमंडल में ये तीनों राज्य मंत्री थे. शपथ ग्रहण समारोह के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष मदन कौशिक, कई विधायक, धामी की मां बिश्ना देवी और पत्नी गीता धामी समेत अन्य लोग भी मौजूद थे. मूल रूप से पिथौरागढ़ जिले के डीडीहाट तहसील के कनालीछीना के रहने वाले धामी का पूरा जीवन उधम सिंह नगर जिले के खटीमा में ही बीता है. उन्होंने यहीं अपनी शिक्षा ग्रहण की और छात्र राजनीति में प्रवेश किया. उन्होंने यहीं से 2012 में विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीते. वर्ष 2017 में एक बार फिर वह यहीं से दोबारा चुनाव जीते और विधायक बने. उन्होंने सरकार का हिस्सा बनकर भले ही काम नहीं किया हो लेकिन वह लंबे समय से संगठन के लिए कार्य करते रहे हैं. मुख्यमंत्री घोषित होने के बाद धामी ने कहा कि कनालीछीना उनकी जन्मभूमि है और खटीमा कर्मभूमि.
-
तीरथ सिंह रावत ने 10 मार्च को संभाला था मुख्यमंत्री का पद
दरअसल, तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद से शुक्रवार को इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद बीजेपी विधायक दल की शनिवार दोपहर को बैठक हुई, जिसमें नए मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगाई गई और पुष्कर सिंह धामी के नाम का चयन किया गया. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने बुधवार को तीरथ सिंह रावत को दिल्ली बुलाया था. उन्होंने दिल्ली से लौटने के बाद अपना इस्तीफा सौंपा था. इस्तीफा देने के बाद मुख्यमंत्री रावत ने संवाददाताओं को बताया था कि उनके इस्तीफा देने का मुख्य कारण संवैधानिक संकट था, जिसमें निर्वाचन आयोग के लिए चुनाव कराना मुश्किल था. संवैधानिक संकट की परिस्थितियों को देखते हुए मैंने अपना इस्तीफा देना उचित समझा. पौड़ी से लोकसभा सदस्य रावत ने इस वर्ष 10 मार्च को मुख्यमंत्री का पद संभाला था और संवैधानिक बाध्यता के तहत उन्हें छह माह के भीतर यानी 10 सितंबर से पहले विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होना था.
-
क्या कहती है जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 151ए
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 151ए के मुताबिक निर्वाचन आयोग संसद के दोनों सदनों और राज्यों के विधायी सदनों में खाली सीटों को रिक्ति होने की तिथि से छह माह के भीतर उपचुनावों के द्वारा भरने के लिए अधिकृत है, बशर्ते किसी रिक्ति से जुड़े किसी सदस्य का शेष कार्यकाल एक वर्ष अथवा उससे अधिक हो. यही कानूनी बाध्यता मुख्यमंत्री के विधानसभा पहुंचने में सबसे बड़ी अड़चन के रूप में सामने आई क्योंकि विधानसभा चुनाव में एक साल से कम का समय बचा है. वैसे भी कोविड महामारी के कारण भी फिलहाल चुनाव की परिस्थितियां नहीं बन पाईं.