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अर्नब गोस्वामी की ज़मानत याचिका पर उठे सवाल

सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने लिखा पत्र

नई दिल्ली/दि.१२ – अर्नब गोस्वामी को सर्वोच्च न्यायालय से मिली ज़मानत को लेकर पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने परोक्ष रूप से देश न्याय पालिका पर सवाल उठाते हुये पूछा कि अर्णब के मामले में न्यायपालिकाओं जिसमें सर्वोच्च न्यायालय भी शामिल है ने जो चुस्ती और फुर्ती दिखाई क्या यही अदालतें निजी स्वतंत्रता के अन्य मामलों में भी इतनी ही चुस्ती और फुर्ती दिखाएगी.
उनका तर्क था कि सर्वोच्च न्यायालय से लेकर निचली अदालतों तक बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं लेकिन उनकी कोई तुरत सुनवाई नहीं है. चिदंबरम ने जस्टिस चंद्रचूड़ के फ़ैसले को सराहते हुये साफ़ किया कि वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के पक्षधर हैं,इस लिये भी कि हमारा संविधान साफ़ तौर पर कहता है कि जीवन और स्वतंत्रता सबसे अहम है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती.
परन्तु देश के अनेक उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में ऐसे फ़ैसले सुनाये हैं जो संविधान की व्यवस्था से मेल नहीं खाते. यह सभी अदालतों की जि़म्मेदारी है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में उतनी ही शीघ्रता दिखायें जितनी अर्नव के मामले में दिखाई गयी है.
पूर्व गृह मंत्री चिदंबरम ही नहीं, बड़े पैमाने पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अर्नव की ज़मानत याचिका पर अबिलंब सुनवाई करने का जो निर्णय लिया उसकी आलोचना हो रही है. प्रशांत भूषण ने टिप्पणी करते हुये कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने बिजली के करेंट की तरह अर्नव की याचिका पर सुनवाई की,जो लम्बे समय से इसी निजिता की स्वतंत्रता को लेकर जेलों में पड़े हैं उनकी सुनवाई क्यों नहीं.
सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने तो अपना विरोध जताने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के महासचिव को खुला खत लिखा और आरोप लगाया कि सर्वोच्च न्यायालय में सलेक्टिव लिस्टिंग की जा रही है ,आखिर केवल 7 दिन जेल में रहने वाले की याचिका पर सुनवाई विशेष जल्दी में और जो महीनों से जेल में हैं उनकी कोई सुनवाई नहीं, यह दोहरा मापदंड क्यों ?

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