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कैट के लगातार दबाव के बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने दिए संकेत

'करेंसी नोट बैक्टीरिया और वायरस फैलाने में सक्षम'

नई दिल्ली./दि.५ – करेंसी नोट के द्वारा किसी भी प्रकार का बैक्टीरिया और वायरस एक दूसरे तक फैल सकता है और इसलिए करेंसी के उपयोग की बजाय लोगों को डिजिटल भुगतान का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए’ कन्फेडरेशन ऑफ इंडिया ट्रेडर्स (कैट) द्वारा भेजे गये एक प्रश्न के जवाब में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने अपनी एक मेल में अप्रत्यक्ष रूप से उत्तर दिया है. कैट जो एक साल से अधिक समय करेंसी द्वारा बैक्टीरिया और वायरस फैलने के बारे में समय-समय पर इस स्पष्टीकरण की मांग करता आ रहा है, ने विगत ९ मार्च ,२०२० को केन्द्रीय वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीथरामन को एक पत्र भेजा, जिसमें यह स्पष्ट करने का आग्रह किया गया कि क्या करेंसी नोट बैक्टीरिया और वायरस के वाहक हैं या नहीं जिसे वित्त मंत्रालय ने रिजर्व बैंक को भेजा जिसके प्रतियुत्तर में आरबीआई ने ३ अक्तूबर, २०२० को एक मेल के माध्यम से कैट को दिए अपने जवाब में ऐसा संकेत दिया है.

कैट को भेजे अपने उत्तर में रिजर्व बैंक ने कहा कि कोरोना वायरस महमारी को सीमित करने के लिए लोग अपने घरों से ही सुविधापूर्वक मोबाइल बैंकिंग, इंटरनेट बैंकिग, कार्ड इत्यादी जैसे ऑनलाइन चैनलों के माध्यम से डिजिटल भुगतान कर सकते है और करेंसी का उपयोग करने अथवा एटीएम से नगदी निकालने से बच सकते हैं! इसके अलावा समय-समय पर अधिकारियों द्वारा जारी कोविड पर सार्वजनिक स्वास्थ्य दिशानिर्देशों का कडाई से पालन किया जाना आवश्यक है.

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी सी भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि करेंसी नोटों द्वारा किसी भी प्रकार के बैक्टीरिया या वायरस जैसे कोविड की बहुत तेजी से फैलने की संभावना सबसे ज्यादा है, जिसको देखते हुए कैट बीते एक साल से ही सरकार के मंत्रियों एवं अन्य प्राधिकरणो को इसका स्पष्टीकरण लेने के लिए प्रयासरत है. पिछले साल से अनेको बार इस मुददे को उठाने के बाद ये पहला अवसर है जब आरबीआई ने इसका संज्ञान लेते हुए जवाब तो दिया है पर मूल प्रश्न से कन्नी काट गए. हालांकि अपने जवाब में आरबीआई ने इससे इनकार भी नहीं किया है जिससे पूरी तरह ये संकेत मिलता है कि करेंसी नोट के माध्यम से वायरस और बैक्टीरया फैलता है और इसलिए ही आरबीआई ने करेंसी भुगतान से बचने के लिए डिजीटल भुगतान के अधिकतम उपयोग की सलाह दी है.

श्री भरतिया और श्री खंडेलवाल ने संयुक्त रूप से कहा कि २९ अगस्त को जारी आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘प्रचलन में बैंक नोटों का मूल्य और मात्रा क्रमश: १७.० प्रतिशत और ६.२ से बढ़कर, साल २०१८ और २०१९ में २१,१०९ बिलियन और १०८,७५९ मिलियन तक पहुंच गई थी. मूल्य के संदर्भ में ५०० और २००० के नोटों की हिस्सेदारी, जो मार्च २०१८ में बैंकनोट्स के कुल मूल्य का ८०.२ प्रतिशत थी वह मार्च २०१९ में बढ़कर ८२.२ प्रतिशत हो गई. १ जुलाई, २०१८ से ३०जून, २०१९ के दौरान करेंसी मुद्रण पर कुल व्यय रूपये ४८.११ बिलियन रहा जो वर्ष २०१७-१८ में ४९.१२ बिलियन था.

श्री भरतिया और श्री खंडेलवाल ने कहा कि चूंकि भारत और अन्य देशों के विश्वसनीय संगठनों की विभिन्न रिपोर्टो ने साबित किया है कि करेंसी नोट के जरिए विभिन्न किस्मों का बैक्टीयिा और वायरस फैल सकता है. भारत में नकदी का उपयोग बेहद अधिक होता है और देश की १३० करोड़ जनता करेंसी नोटों के द्वारा भुगतान को किसी भी अन्य डिजिटल भुगतान से बेहतर मानते हुए अधिकतम करेंसी नोटों का उपयोग करते हैं. वर्तमान कोविड काल हो या सामान्य काल, करेंसी का उपयोग हर परिस्थितियों में घातक हो सकता है. करेंसी नोट ज्ञात-अज्ञात लोगों की एक श्रंखला द्वारा देश भर में लिया और दिया जाता है इसलिए यह किसी भी महामारी को किसी भी हद तक बढ़ाने में सक्षम है. करेंसी नोटों के व्यापक लेन-देन में सबसे बड़ा और बुरा प्रभाव देशभर के व्यापारियों पर पड़ता है, क्योकि नकद नोटों के इस्तेमाल में व्यापारिक प्रतिष्ठान अव्वल नंबर पर आते है. इसको ध्यान में रखते हुए और व्यापारियों के हितों के लिए कैट ने पिछले एक साल से इस मुद्दे पर कई बार केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री और इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) को पत्र भेजें हैं, लेकिन जवाब देना तो दूर उन्होंने पत्रों को स्वीकार करना भी उचित नहीं समझा.

श्री भरतिया और श्री खंडेलवाल दोनों ने केन्द्रीय वित्त मंत्री से आग्रह किया है कि देश में डिजिटल भुगतान को अधिक से अधिक प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को एक इन्सेंटिव स्कीम की घोषणा करनी चाहिए. जिससे ज्यादा से ज्यादा व्यापाराी एवं अन्य लोग अपने रोजमर्रा के कार्यो में नकद की बजाय डिजिटल भुगतान सिस्टम का उपयोग करें तथा देश में नगदी के उपयोग को कम करने के लिए अन्य कदम उठाए जाना जरूरी है! डिजिटल लेन-देन पर बैंक शुल्क को समाप्त किया जाए और बैक शुल्क राशि के एवज में सीधे बैंकों को सब्सिडी दी जाए ! इस तरह की सब्सिडी सरकार पर वित्तीय बोझ नहीं पडऩे देगी क्योंकि इससे बैंक नोटों की छपाई पर होनेवाले खर्च में कमी आएगी और देश में ज्यादा से ज्यादा डिजिटल भुगतान को अपनाया जा सकेगा!

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