नई दिल्ली/दि. 22 – लोकसभा सांसद और AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान पर निशाना साधा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि “1930 से एक योजनाबद्ध तरीके से मुसलमानों की आबादी बढ़ाने का संगठित प्रयास किया गया.” ओवैसी ने आरएसएस प्रमुख पर निशाना साधते हुए कहा कि संघ मुस्लिमों के खिलाफ नफरत फैलाने का आदी है और समाज को इससे जहरीला कर दिया है.
असदुद्दीन ओवैसी ने ट्विटर पर लिखा, “आरएसएस के भागवत कहते हैं कि 1930 से मुस्लिम आबादी बढ़ाने का एक संगठित प्रयास किया गया.
- अगर सबका डीएनए एक ही है तो फिर गिनती क्यों हो रही है?
- 1950-2011 के बीच भारतीय मुस्लिमों की आबादी वृद्धि दर में सबसे ज्यादा कमी आई है. संघ के पास दिमाग शून्य है, सिर्फ
मुसलमानों के प्रति 100 फीसदी नफरत भरा है.”
उन्होंने एक और ट्वीट में आगे लिखा, “संघ मुस्लिम विरोधी घृणा फैलाने का आदी रहा है और इससे समाज में जहर फैला दिया है. इस महीने की शुरुआत में भागवत ने ‘हम सब एक हैं’ कहकर ड्रामा किया था, इससे उनके समर्थक बहुत ज्यादा बेचैन हो गए होंगे. इसलिए उन्हें वापस मुसलमानों को खलनायक बताना और झूठ बोलना पड़ा. आधुनिक भारत में हिंदुत्व की कोई जगह नहीं होनी चाहिए.”
असम के गुवाहाटी में बुधवार को एक कार्यक्रम के दौरान मोहन भागवत ने कहा था कि 1930 से योजनाबद्ध तरीके से मुसलमानों की संख्या बढ़ाने का प्रयास किया गया. उन्होंने कहा कि यह एक योजनाबद्ध विचार था कि जनसंख्या बढ़ाएंगे, अपना प्रभुत्व अपना वर्चस्व स्थापित करेंगे और फिर इस देश को पाकिस्तान बनाएंगे.
उन्होंने कहा, “ये पूरे पंजाब के बारे में था, ये सिंध के बारे में था, ये असम और बंगाल के बारे में था. कुछ मात्रा में ये सत्य हो गया. भारत विभाजन हो गया, लेकिन जैसा चाहिए था वैसा नहीं मिला. असम नहीं मिला, बंगाल आधा ही मिला, पंजाब आधा ही मिला. जो मांग के मिला वो मिला, लेकिन अब इसको कैसे लेना है, ऐसा भी विचार चला. कुछ लोग पीड़ित, शरणार्थी आते थे और कुछ लोग संख्या बढ़ाने के उद्देश्य लेकर आते थे.”
भागवत ने दावा किया कि भारत को नेताओं के एक समूह ने स्वतंत्रता सेनानियों और आम लोगों की सहमति लिए बगैर विभाजित कर दिया तथा कई लोगों के सपने बिखर गए. उन्होंने कहा, “देश के विभाजन के बाद भारत ने अल्पसंख्यकों की चिंताओं को सफलतापूर्वक दूर किया लेकिन पाकिस्तान ने नहीं…उन्होंने हजारों उत्पीड़ित हिंदुओं, सिखों और जैन परिवारों को घरबार छोड़ने और भारत में आने को मजबूर किया. सीएए उन शरणार्थियों की मदद करता है, इसका भारतीय मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है.”
उन्होंने एनआरसी के बारे में कहा कि सभी देशों को यह जानने का अधिकार है कि उनके नागरिक कौन हैं. उन्होंने कहा, ‘‘यह मामला राजनीतिक क्षेत्र में है क्योंकि इसमें सरकार शामिल है… लोगों का एक वर्ग इन दोनों मामलों को सांप्रदायिक रूप देकर राजनीतिक हित साधना चाहता है.’’ भागवत ने कहा कि सरकार का यह कर्तव्य है कि वह अनधिकृत रूप से बसे लोगों (शरणार्थियों) की पहचान करे ताकि वह अपने लोगों के फायदे के लिए कल्याणकारी योजनाएं बना सके. उन्होंने कहा कि इन लोगों की संख्या बढ़ती रही और अन्य क्षेत्रों सहित चुनावी राजनीति पर हावी होते रहें तो मूल निवासी निश्चित रूप से भयभीत होंगे.
उन्होंने कहा कि समस्या तब शुरू होती है जब एक खास समूह के लोग पांच हजार साल पुरानी सभ्यता की अवज्ञा करते हैं और वे अपनी बढ़ती आबादी के बूते अपनी लोकतांत्रिक शक्ति का इस्तेमाल करने से नहीं हिचकिचाते हैं. उन्होंने कहा, “इससे मूल निवासियों की संस्कृति और सामाजिक मूल्य को खतरा पैदा होता है. मुस्लिम परिवारों का भारत में सुव्यस्थित रूप से प्रवास करना, एक खास तरीके से अपनी आबादी बढ़ाना, असमी सहित विभिन्न समुदायों के लिए चिंता का विषय है.”
वहीं इस महीने की शुरुआत में आरएसएस प्रमुख ने कहा था कि सभी भारतीयों का डीएनए एक है और मुसलमानों को “डर के इस चक्र में” नहीं फंसना चाहिए कि भारत में इस्लाम खतरे में है. उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग मुसलमानों से देश छोड़ने को कहते हैं, वे खुद को हिन्दू नहीं कह सकते. वे राष्ट्रीय मुस्लिम मंच द्वारा गाजियाबाद में ‘हिन्दुस्तानी प्रथम, हिन्दुस्तान प्रथम’ विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे.
उन्होंने कहा था कि लोगों में इस आधार पर अंतर नहीं किया जा सकता कि उनका पूजा करने का तरीका क्या है. भागवत ने लिंचिंग (पीट-पीट कर मार डालने) की घटनाओं में शामिल लोगों पर हमला बोलते हुए कहा, ‘‘वे हिन्दुत्व के खिलाफ हैं.’’ उन्होंने कहा था, “हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात भ्रामक है क्योंकि वे अलग नहीं, बल्कि एक हैं. सभी भारतीयों का डीएनए एक है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों. हम एक लोकतंत्र में हैं. यहां हिन्दुओं या मुसलमानों का प्रभुत्व नहीं हो सकता. यहां केवल भारतीयों का वर्चस्व हो सकता है.”