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अमित शाह की चाणक्य नीति से बिहार में सीटों का बंटवारा तय

नीतीश, चिराग और उपेंद्र कुशवाहा खुश

पटना – आरजेडी और कांग्रेस के अथक प्रयासो के बावजूद चिराग पासवान एनडीए के साथ ही जुड गए. पासवान को भाजपा ने मना ही लिया. नीतीश कुमार की तरह वह भी एनडीए में कायम रहेंगे. इसी तरह उपेंद्र कुशवाहा को भी भाजपा ने मना लिया है. अमित शाह को ऐसे ही भाजपा का चुनावी चाणक्य नहीं कहा जाता है. केवल सात सीटों में सभी घटक दलों को उन्होंने संतुष्ट कर दिया है. यानी एनडीए में बिहार की 40 सीटों के बंटवारे को लेकर अब कोई मुश्किल नहीं है.
बताया जाता है कि, जो सत्ता में रहता है वह विपक्ष के मुकाबले ज्यादा ताकतवर होता है. इसलिए कि उसके पास देने-बांटने के लिए बहुत कुछ होता है. विश्वासमत के दौरान नीतीश कुमार संकटों से घिरे थे. आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने उन्हें पटखनी देने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी. तेजस्वी यादव बार-बार खेला होने की बात कह कर नीतीश का ब्लड प्रेशर बढ़ा रहे थे. खतरा तो सचमुच साफ दिख रहा था, लेकिन अमित शाह ने अपना कमाल दिखा दिया. नीतीश कुमार आखिर में विश्वासमत हासिल करने में अफल रहे.
नीतीश कुमार के एनडीए में आ जाने के बाद एनडीए के घटक दलों की धड़कनें बढ़ गई थीं. इसलिए कि जेडीयू की 16 सिटिंग सीटें नीतीश के खाते में जाती दिख रही थीं. इस कारण उनकी नाराजगी भी सामने आ रही थी. जब सीट बंटवारे का समय आया तब बैठकों का दौर भी शुरू हुआ. सबसे अधिक बेचैनी लोजपा (आर) के नेता चिराग पासवान को थी. उनकी बेचैनी के दो कारण थे. पहला यह कि उनके चाचा ने अपना अलग धड़ा खड़ा कर लिया था. चिराग के चाचा पशुपति पारस पांच सांसदों के नेता थे. चिराग अपनी पार्टी के इकलौता सांसद थे. उन्हें भय था कि चाचा कहीं उनका हक न मार ले जाएं. लेकिन अमित शाह ने उनकी गुत्थी भी सुलझा दी है.
* चाचा-भतीजे की नाराजी का कारण?
कभी आरएलएसपी और आरएलजेडी के नेता रहे आरएलएम बना कर अब एनडीए के साथ हैं. उन्हें भी उम्मीद थी कि भाजपा उन्हें उचित सम्मान देगी. वे 2014 की तरह तीन सीटों पर अड़े थे. हम के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी अपनी पार्टी के लिए लोकसभा की एक सीट मांग रहे थे. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू अपनी 16 सिटिंग सीटों के लिए पहले ही भाजपा से सेटिंग कर चुकी थी. भाजपा भी इस बार अपनी 17 सिटिंग सीटें छोड़ने के मूड में नहीं थी. साल 2019 में भाजपा ने नीतीश को साथ लाने के लिए 2014 में जीतीं 22 सीटों में अपनी पांच सीटें कुर्बान कर दी थी. इस बार भाजपा ऐसा आत्मघाती कदम उठाने से बचना चाहती थी. जिन घटक दलों को नीतीश के महागठबंधन में रहते उनके हिस्से की 16 सीटों में हिस्सेदारी की उम्मीद थी, वे उनके एनडीए में लौटने से निराश हो गए थे.

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