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‘उन’ दोनों बहनों की फांसी अंतत: टल गई

दया याचिका खारिज होने के बाद भी आजीवन कारावास

* फांसी की सजा के अमल में देरी होने से मिला फायदा
नई दिल्ली दि.15 – वर्ष 1996 के दौरान कोल्हापुर में घटित बाल हत्याकांड में दोषी रहने वाली रेणुका शिंदे व सीमा गावीत नामक दो सगी बहनों की फांसी को रद्द करने का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय ने कायम रखा है. फांसी की सजा के खिलाफ इन दोनों बहनों द्बारा प्रस्तूत की गई दया याचिकाओं को राज्यपाल व राष्ट्रपति द्बारा खारिज कर दिया गया था. लेकिन सजा पर अमल करने में विलंब होने के चलते मुंबई उच्च न्यायालय ने उनकी फांसी की सजा को रद्द करते हुए इसे आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया था. जिस पर हस्तक्षेप करने से सर्वोच्च न्यायालय ने इंकार कर दिया. साथ ही यह भी कहा कि, दया याचिका पर निर्णय लेने में होने वाले विलंब का दोषियों को लाभ होता है. यदि ऐसा ही चलता रहा, तो फांसी की सजा का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा. अत: बेहद जरुरी है कि, दया याचिकाओं पर फैसला लेने में बेवजह ही बहुत ज्यादा वक्त न लिया जाए और दया याचिका के खारिज होने के उपरान्त सजा पर अमल करने में भी बेवजह समय नष्ट न किया जाए.
न्या. एम. आर. शाह व न्या. सी. टी. रविकुमार की खंडपीठ ने कहा कि, दया याचिका पर निर्णय लेने और सजा के अमल में बेवजह विलंब किए जाने के चलते फांसी की सजा को आजीवन कारावास में रुपांतरीत करने का निर्णय लिया गया है तथा यहीं वजह इस निर्णय का मुख्य आधार है.

* 27 साल पहले घटित हुआ था बाल हत्याकांड
वर्ष 1996 के दौरान कोल्हापुर में बाल हत्या कर घटित हुआ था. जिसके लिए रेणुका शिंदे व सीमा गावीत इन दो बहनों को दोषी करार देते हुए कोल्हापुर की अदालत ने वर्ष 2001 में उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी. पश्चात वर्ष 2004 में हाईकोर्ट तथा वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने भी फांसी की सजा को कायम रखा था. जिसके बाद वर्ष 2013 में राज्यपाल एवं वर्ष 2014 में राष्ट्रपति द्बारा इन दोनो बहनों की दया याचिका को खारिज कर दिया गया. लेकिन इसके बावजूद अगले 7 वर्ष के दौरान फांसी की सजा पर अमल नहीं हुआ. ऐसे में इन दोनों बहनों ने अपनी फांसी की सजा को रद्द करवाने हेतु मुंबई हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. जिसमें सजा के अमल में हो रही देरी को अपने लिए अन्यायकारक बताया गया था और सजा को रद्द किए जाने की मांग की गई थी. इसी को आधार बनाते हुए मुंबई हाईकोर्ट ने इन दोनों बहनों की याचिका को स्वीकार करते हुए उनकी फांसी की सजा को रद्द करते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया था. जिसके खिलाफ राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को यथावत रखते हुए इसमें अपनी ओर से कोई भी हस्तक्षेप करने से मना कर दिया है. साथ ही कहा कि, सजा के अमल में हुई देरी का लाभ हत्याकांड के दोषियों को मिला है.

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