इंडियन नेवी के लिए देसी टेक्निक से वॉरशिप तैयार करेगी ये कंपनी
100 वॉरशिप्स बनाने का है रिकॉर्ड
नई दिल्ली/ दि. 1 – देश का अग्रणी शिपयार्ड गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) अब उन स्वदेशी क्षमताओं को विकसित करने की दिशा में काम कर रहा है जिसके बाद देश में ही उच्च क्षमता वाली वॉरशिप्स तैयार की जा सकेंगी. ये ऐसी वॉरशिप्स होंगी जो न सिर्फ इंडियन नेवी की जरूरतों को पूरा करेंगी बल्कि इन्हें दूसरे देशों को भी निर्यात किया जाएगा. जीआरएसई कमर्शियल जहाजों की मरम्मत करती है और नौसेना को भी सेवाएं प्रदान कर रही है. ये कोलकाता स्थित शिपयार्ड है.
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दूसरे देशों को भी होंगी निर्यात
कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर और चेयरमैन रीयर एडमिरल (रिटायर्ड) वीके सक्सेना ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि जीआरएसई का सारा ध्यान फिलहाल उन स्वदेशी क्षमताओं को विकसित करने पर है जो ऐसी वॉरशिप्स के निर्माण में मददगार हो सकें जो इंडियन नेवी के साथ ही साथ दूसरे देशों को भी निर्यात की जा सकें. उन्होंने कहा कि इस समय देश में MSME एक ऐसे सेक्टर के तौर पर सामने आया है जो न सिर्फ बड़े स्तर पर रोजगार पैदा कर रहा है बल्कि जीडीपी में भी खासा योगदान दे रहा है. सरकार की तरफ से हुए प्रयासों के बाद देश के रक्षा सेक्टर में भी तेजी से विकास हो रहा है. फिलहाल इंडस्ट्री के लिए शुरू की गई उन नई पहल को ध्यान से देखने की जरूरत है जो इंडस्ट्री के लिए मददगार साबित होने वाली हैं.
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44 वॉरशिप्स पर चल रहा काम
रीयर एडमिरल वीके सक्सेना ने सरकार की तरफ से मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और लोकल फॉर वोकल जैसी पहल को सराहा है. उन्होंने कहा कि इस तरह के कदम देश के रक्षा उद्योग में नया भरोसा पैदा करते हैं. साथ ही सरकार ने एफडीआई की सीमा को भी बढ़ाकर इस क्षेत्र को बड़ी राहत दी है. इंडियन नेवी के लिए इस समय देश के शिपयार्ड्स में करीब 44 वॉरशिप्स पर काम चल रहा है. जीआरएसई की तरफ से पिछले वर्ष इंडियन नेवी को चौथा एंटी-सबमरीन वॉरफेयर स्टेल्थ कोवर्ट आईएनएस करावती सौंपा गया था. पहली तीन शिप्स आईएनएस कमरोता, आईएनएस कदमत और आईएनएस किल्तान भी जीआरएसई की तरफ से बनाई गई थीं. ये सभी इंडियन नेवी के पूर्वी बेड़े का एक अहम हिस्सा हैं. जीआरएसई ने आईएनएस करावती को इंडियन नेवी के प्रोजेक्ट 28 के तहत तैयार किया था. इस प्रोजेक्ट को सन् 2003 में मंजूरी मिली थी.
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1884 में हुई थी शुरुआत
जीआरएसई की शुरुआत सन् 1884 में हुगली नदी के किनारे एक छोटी सी फैक्टरी के तौर पर हुई थी. सन् 1960 में सरकार ने इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया. सितंबर 2006 में कंपनी को मिनीरत्न का स्टेटस मिला. ये देश का पहला शिपयार्ड है जिसके नाम पर 100 वॉरशिप्स बनाने का रिकॉर्ड दर्ज है. भारत के अलावा जीआरएसई फिलीपींस, वियतनाम और दक्षिण कोरिया के लिए भी जहाज का निर्माण कर रहा है. केंद्र सरकार इस समय नौसेना को सशक्त बनाने के लिए कई कदम उठा रही है. हाल ही में रक्षा मंत्रालय की तरफ से इंडियन नेवी के लिए करीब 43,000 करोड़ रुपए की लागत से 6 पनडुब्बियों के निर्माण के लिए मंजूरी दे दी है. रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में रक्षा अधिग्रहण परिषद ने इस ‘P-75 इंडिया’ प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है. सूत्रों के मुताबिक इन सभी पनडुब्बियों का निर्माण ‘मेक इन इंडिया’ के तहत होगा.