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पहला मानसून अनुमान जारी
नई दिल्ली/दि.१३ – स्काइमेट के मानसून पूर्वानुमान के अनुसार चार महीनों जून – जुलाई – अगस्त – सितंबर की औसत वर्षा BBM.6 मिमी की तुलना में 2021 में 103 फीसदी बारिश होने को संभावना है. इसमें 5 फीसदी कम या ज्यादा हो सकती है. मानसून के क्षेत्रीय प्रदर्शन पर स्काइमेट का अनुमान है कि उत्तर भारत के मैदानी भागों और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में पूरे सीजन बारिश कम होने की आशंका है. हालांकि, मानसून के शुरुआती महीने जून और आखिरी हिस्से यानी सितंबर में देश भर में व्यापक बारिश के संकेत है.
बता दें कि 96 फीसदी से 104 फीसदी के बीच हुई बारिश को औसत या सामान्य मानसून के रूप में परिभाषित किया जाता है. आमतौर पर 1 जून के आसपास केरल के रास्ते दक्षिण पश्चिमी मानसून भारत में प्रवेश करता है. 4 महीने की बरसात के बाद यानी सितंबर के अंत में राजस्थान के रास्ते मानसून की वापसी होती है. स्काइमेट के सीईओ योगेश पाटिल का कहना है कि प्रशांत महासागर में पिछले साल से ला नीना की स्थिति बनी हुई है. और अब तक मिल रहे संकेत इशारा करते हैं कि पूरे मानसून सीज़न में यहीं स्थिति रहे सकती है.
मानसून के मध्य तक आते – आते प्रशांत महासागर के मध्य भागों में समुद्र की सतह का तापमान फिर से कम होने लगेगा. हालांकि समुद्र की सतह के ठंडा होने की यह प्रक्रिया बहुत धीमी रहेगी.
इस आधार पर कह सकते हैं कि मानसून को खराब करने वाले अल नीनों के उभरने की आशंका इस साल के मानसून में नहीं है.
मानसून को प्रभावित करने वाला एक अन्य महत्वपूर्ण सामुद्रिक बदलाव है मैडेन जूलियन ओशिलेशन , जो इस समय हिन्द महासागर से दूर हैं. पूरे मानसून सीजन में यह बमुश्किल 3-4 बार हिन्द महासागर से होकर गुजरता है. मानसून पर इसके किसी प्रभाव के बारे अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के करीब 20 करोड़ किसान धान, गन्ना, मक्का, कपास और सोयाबीन जैसी कई फसलों की बुआई के लिए मानसून की बारिश का इंतजार करते हैं.
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि देश की खेती लायक करीब 50 फीसदी जमीन में सिंचाई की सुविधाओं की कमी है. इसके चलते कृषि उत्पादन का भारत की अर्थव्यवस्था में सिर्फ 14 फीसदी की भागीदारी है. हालांकि, यह सेक्टर देश की करीब 65 करोड़ से अधिक आबादी को रोजगार देता है. भारत की आबादी करीब 130 करोड़ है यानी करीब 50 फीसदी लोगों को खेती-किसानों में रोजगार मिला हुआ है.
स्काइमेट के अनुसार जून में रुक्क्न ( 166.9 मिमी) के मुकाबले 106 फीसदी बारिश हो सकती है 70 फीसदी संभावना सामान्य बारिश की है. 20 फीसदी संभावना सामान्य से अधिक बारिश की है. 10 फीसदी संभावना सामान्य से कम बारिश की है .
जुलाई में एलपीए ( 289 मिमी) के मुकाबले 97 फीसदी बारिश हो सकती है. 75 फीसदगी संभावना सामान्य बारिश की है. 10 फीसदी संभावना सामान्य से अधिक बारिश की है. 15 फीसदी संभावना सामान्य से कम बारिश की है.
अगस्त में एलपीए ( 258.2 मिमी ) के मुकाबले 99 फीसदी बारिश हो सकती है. 80 फीसदी संभावना सामान्य बारिश की है. 10 फीसदी संभावना सामान्य से अधिक बारिश की है. 10 फीसदी संभावना सामान्य से कम बारिश की है.
सितंबर में एलपीए ( 170.2 मिमी ) के मुकाबले 116 फीसदी बारिश हो सकती है. 30 फीसदी संभावना सामान्य बारिश की है. 60 फीसदी संभावना सामान्य से अधिक बारिश की है और 10 फीसदी संभावना सामान्य से कम बारिश की है.
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क्या होता है अल-नीनो
अल-नीनो की वजह से प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह गर्म हो जाती है, इससे हवाओं का रास्ते और रफ्तार में परिवर्तन आ जाता है जिसके चलते मौसम चक्र बुरी तरह से प्रभावित होता है.
मौसम में बदलाव के कारण कई स्थानों पर सूखा पड़ता है तो कई जगहों पर बाढ़ आती है. इसका असर दुनिया भर में दिखाई देता है.
अल नीनो बनने से भारत और आस्ट्रेलिया में सूखा पड़ता है, जबकि अमेरिका में भारी बारिश होती है.जिस वर्ष अल-नीनो की सक्रियता बढ़ती है, उस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून पर उसका असर निश्चित रूप से पड़ता है. भारत में दक्षिण पश्चिमी मानसून को ही मानसून सीजन कहा जाता है क्योंकि जून से सितंबर तक 70 फीसदी बारिश इन्हीं चार महीनों के दौरान होती है. भारत में अल नीनो के कारण सूखे का खतरा सबसे ज्यादा रहता है.