आज सुको में घंटो जिरह हुई, वकीलों ने सारे डॉक्यूमेंट बनावटी बताये
सांसद नवनीत राणा की जाति प्रमाणपत्र का मामला
* राणा के वकील कोई नया मुद्दा नहीं उठा सके
* सुको में मामला हुआ ‘क्लोज फॉर ऑर्डर’
* दो सप्ताह के भीतर आएगा फैसला
नई दिल्ली/दि.28– अमरावती संसदीय क्षेत्र की सांसद नवनीत राणा के जाति प्रमाणपत्र संबंधित मामले को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर दोनों पक्षों के वकीलों की जोरदार जिरह हुई. करीब 1 घंटा 50 मिनट तक चली इस सुनवाई के दौरान प्रतिवादी पक्ष द्वारा 1 घंटा 35 मिनट तक युक्तिवाद किया गया. वहीं बचे हुए समय में याचिकाकर्ता यानि सांसद नवनीत राणा के वकील ने अपनी दलिले पेश की. दोनों पक्षों का युक्तिवाद सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने मामले की सुनवाई पूरी हो जाने की घोषणा करते हुए इस मामले को ‘क्लोज फॉर ऑर्डर’ कर दिया. साथ ही अगली तारीख देने की बजाय कहा कि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा आगामी दो सप्ताह के भीतर इस मामले मेें अपना फैसला सुनाया जाएगा.
इस संदर्भ में दैनिक अमरावती मंडल को मिली जानकारी के मुताबिक आज सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान जहां एक ओर राणा विरोधी पक्ष के वकीलों ने मुंबई हाईकोर्ट के फैसले को पूरी तरह से सही बताते हुए कहा कि, मुंबई हाईकोर्ट ने फैसला देते समय सांसद नवनीत राणा के जाति प्रमाणपत्र सहित यह प्रमाणपत्र बनाने हेतु दिये गये सभी तरह के दस्तावेजों को फर्जी करार दिया था. साथ ही उन दस्तावेजों को देखकर नवनीत राणा द्वारा दस्तावेजों में की गई काटछाट व हेराफेरी भी स्पष्ट रुप से सामने आती है. अत: मुंबई हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सांसद नवनीत राणा द्वारा की गई अपील को त्वरित खारिज किया गया. इस समय मामले की सुनवाई कर रहे जस्टीस जे. के. माहेश्वरी व जस्टीस संजय करोल की खंडपीठ ने राणा के विरोध में जिरह कर रहे एड. शादाब फरासत व एड. सचिन थोरात पाटिल से बीच-बीच में कई बार उनके द्वारा उठाये गये मुद्दों पर बात की. वहीं राणा के वकील एड. धु्रव मेहता की ओर से आज विपक्षी वकीलों की जिरह का जवाब देते समय कोई नया मुद्दा नहीं उठाया जा सका.
दैनिक अमरावती मंडल को सूत्रों के जरिए मिली जानकारी के अनुसार इस सुनवाई के दौरान राणा के खिलाफ जिरह कर रहे वरिष्ठ वकील एड. शादाब फरासत व एड. सचिन थोरात पाटिल ने सुप्रीम कोर्ट की द्विसदस्यीय खंडपीठ के समक्ष सांसद नवनीत राणा के सेल्फ स्कूल लिविंग सर्टीफिकेट सहित उनके पिता के स्कूल लिविंग सर्टीफिकेट व जाति प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेजों की रंगीन छायांकित प्रतिलिपी प्रस्तुत करते हुए बताया कि, इन दस्तावेजों को देखकर साफ पता चलता है कि, इन दसतावेजों को बनाने के लिए मूल दस्तावेजों में कांट-छाट व हेराफेरी की गई है तथा जाति प्रमाणपत्र बनाने हेतु बनावटी दस्तावेज प्रस्तुत किये गये थे. यह बात हाईकोर्ट द्वारा अपने फैसले में स्पष्ट रुप से कही गई है. परंतु यह बात हाईकोर्ट में ध्यान में आने के बाद भी स्क्रूटनी कमिटी ने अपराध दर्ज करने की कार्रवाई नहीं की. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को कायम रखते हुए सांसद नवनीत राणा के जाति प्रमाणपत्र को अवैध करार देने के साथ ही खारिज करना चाहिए. साथ ही स्क्रूटनी कमिटी को इस बारे में कार्रवाई करने का आदेश देना चाहिए. दैनिक अमरावती मंडल को सूत्रों ने यह जानकारी भी दी कि, राणा के विरोध में पेश हुए वकीलों ने यह भी कहा कि, वर्ष 1991 में स्कूल एडमिशन के समय नवनीत राणा की जाति सिख लिखी हुई थी तथा उसके साथ ‘चमार’ या ‘मोची’ शब्द का उल्लेख नहीं था. साथ ही यह दलील भी दी गई कि, जब नवनीत राणा के पिता का जाति प्रमाणपत्र पहले ही खारिज हो चुका है, तो फिर उनकी बेटी को किस आधार पर अनुसूचित जाति से संबंधित जाति प्रमाणपत्र दिया जा सकता है. इसके अलावा इस बात की ओर भी ध्यान दिलाया गया कि, नवनीत राणा द्वारा जाति प्रमाणपत्र हेतु अपना राशन कार्ड भी सबमिट किया गया. जिस पर कभी भी राशन कार्ड धारक की जाति का उल्लेख नहीं होता. परंतु नवनीत राणा के राशन कार्ड पर जाति का उल्लेख किया गया है और उसमें ‘मोची’ जाति लिखी हुई है. जिसका सीधा मतलब है कि, जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करने हेतु दस्तावेजों में जमकर फर्जीवाडा किया गया है.
दैनिक अमरावती मंडल को सूत्रों के जरिए मिली जानकारी के अनुसार इसके अलावा राणा के विरोधी वकीलों ने अदालत का ध्यान इस ओर भी दिलाया कि, नवनीत राणा द्वारा जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करने हेतु वर्ष 1932 के दौरान उनके दादा या परदादा द्वारा मुंबई में एक जगह किराए पर लेने हेतु किये गये रेंट एग्रीमेंट की प्रतिलिपी प्रस्तुत की गई थी, लेकिन मामले की पडताल के दौरान यह पता चला कि, उक्त रेंट एग्रीमेंट में उल्लेखीत जगह तो मुंबई में कहीं है ही नहीं. यानि यह भी एक तरह का फर्जीवाडा ही था. इसके साथ ही इस जिरह के अंत में राणा विरोधी वकीलों ने यह भी कहा है कि, यदि कोई व्यक्ति पंजाब में ‘सिख-चमार’ जाति से वास्ता रखता है, तो भी सरकारी नियमों के मुताबिक उसे महाराष्ट्र में अनुसूचित जाति हेतु रहने वाली सुविधाओं व सहूलियतों का लाभ नहीं मिल सकता, क्योंकि ‘सिख-चमार’ जाति को महाराष्ट्र में अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त नहीं है. इस लिहाज से भी सांसद नवनीत राणा खुद को ‘मोची’ जाति का बताते हुए हासिल किया गया जाति प्रमाणपत्र पूरी तरह से फर्जी व बनावटी है. अत: बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को पूरी तरह से सही मानते हुए कायम रखा जाना चाहिए तथा नवनीत राणा के जाति प्रमाणपत्र को खारिज कर उनके खिलाफ अपराधिक मामला दर्ज करने की कार्रवाई की जानी चाहिए.
वहीं सूत्रों ने दैनिक अमरावती मंडल को यह भी बताया कि, इसके बाद सांसद नवनीत राणा की ओर से पेश हुए एड. धु्रव मेहता ने इससे पहले वाली सुनवाईयों के दौरान की गई दलिलों को आज एक बार फिर दोबारा दोहराते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को गलत साबित करने का प्रयास किया. परंतु आज विरोधी पक्ष के वकीलों द्वारा की गई जिरह के जवाब में सांसद नवनीत राणा की ओर से एड. धु्रव मेहता कोई नया मुद्दा नहीं उठा सके, बल्कि उन्होंने पिछली सुनवाई के दौरान मुंबई हाईकोर्ट के फैसले को लेकर खुद सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाये गये सवालों का सहारा लेते हुए सांसद नवनीत राणा के पक्ष में दलीले पेश करने का प्रयास किया. जिसके तहत उन्होंने इस मामले में सांसद नवनीत राणा की कोई जवाबदेही नहीं रहने की वकालत करते हुए जाति प्रमाणपत्र की जिम्मेदारी का भार जाति वैधता जांच समिति पर डालने की कोशिश की. साथ ही एड. धु्रव मेहता ने एक बार फिर ‘सिख’ शब्द को धार्मिक उपसर्ग बताते हुए ‘मोची व चमार’ को एकसमान व पर्यायवाची शब्द बताया और यह साबित करने का प्रयास किया कि, ‘सिख-चमार’ होने के नाते सांसद नवनीत राणा को महाराष्ट्र में ‘मोची’ जाति से वास्ता रखने वाला माना जा सकता है और इसी आधार पर जाति वैधता जांच समिति उन्हें जाति प्रमाणपत्र दिया था, जोकि पूरी तरह से सही है.
अमरावती मंडल को मिली जानकारी के अनुसार आज की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों का युक्तिवाद होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई पूरी हो जाने की घोषणा करते हुए इसे ‘क्लोज फॉर ऑर्डर’ करार दे दिया. साथ ही फैसले के लिए अगली तारीख देने की बजाय कहा कि, अदालत द्वारा आगामी दो सप्ताह के भीतर इस मामले में अपना फैसला सुनाया जाएगा. ऐसे में अब सभी की निगाहे सुप्रीम कोर्ट द्वारा सांसद नवनीत राणा के जाति प्रमाणपत्र को लेकर सुनाये जाने वाले फैसले की ओर लगी हुई है, जो ऐन लोकसभा चुनाव के मुहाने पर आने वाला है. वर्ष 2021 में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा फैसला सुनाये जाने के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. जहां कई बार तारीख पर तारीख होने के बाद पिछली 3 तारीख में से इस मामले को लेकर लगातार सुनवाई चल रही थी और आज हुई सुनवाई के बाद सर्वोच्च अदालत ने इसे ‘क्लोज फॉर ऑर्डर’ कर दिया है.