नई दिल्ली/दि.२६- ब्रिटेन के विशेषज्ञों ने कोरोना पर विश्वव्यापी स्टडी की है. यह अध्ययन भारत समेत दुनिया भर के अन्य अस्पतालों में किया गया है. इस अध्ययन को दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक सहयोग के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के खिताब से सम्मानित किया गया है. इसमें 116 देशों के 1,40,000 से अधिक मरीज शामिल हुए हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम और एडिनबरा की यूनिवर्सिटी के पास अब सबसे ज्यादा वैज्ञानिकों द्वारा लिखा और साथी वैज्ञानिकों द्वारा समीक्षित अकादमिक पेपर का रिकॉर्ड है. कोरोनावायरस के सर्जिकल मरीजों पर पड़ने वाले प्रभाव पर तैयार किए गए इस पेपर में 15 हजार 25 वैज्ञानिकों ने योगदान दिया था.
अध्ययन के सह-प्रमुख लेखक और बर्मिंघम विश्वविद्यालय के भारतीय मूल के सर्जन अनील भंगू ने कहा कि अध्ययन का उद्देश्य घातक वायरस के बारे में हमारी समझ में सुधार करना था. दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक सहयोग के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के खिताब से सम्मानित किया जाना हमारी वैश्विक साझेदारी का सबूत है, जिसका मकसद कोरोना की हमारी समझ को बढ़ाना और दुनिया भर में अधिक से अधिक लोगों की जान बचाने में मदद करना है.
वही, एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि कोरोना वायरस लोगों की नाक से उनके दिमाग में प्रवेश कर सकता है. नेचर न्यूरोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, सार्स-सीओवी-2 ना सिर्फ श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है बल्कि केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर भी असर डालता है जिससे अलग-अलग न्यूरोलॉजिकल लक्षण जैसे सूंघने, स्वाद पहचानने की शक्ति में कमी आना, सिर दर्द, थकान और चक्कर आदि दिखने लगते हैं. जर्मनी के चारिटे विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने श्वसन नली का परीक्षण किया. अध्ययन में कोविड-19 से मरने वाले 33 मरीजों को शामिल किया गया. उनमें से 11 महिलाएं और 22 पुरुष थे। उन्होंने बताया कि मरने वालों की औसत आयु 71.6 साल थी. वहीं, कोरोना के लक्षण दिखने से लेकर उनकी मृत्यु तक का औसत समय 31 दिन रहा है. अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि उन्हें मस्तिष्क और श्वसन नली में सार्स-सीओवी-2 आरएनए और प्रोटीन मिले हैं.