स्वागत! राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछे सवाल
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट कर जताई खुशी
नई दिल्ली/दि. 16 – राजद्रोह कानून को लेकर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि वे उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी का स्वागत करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून कानून के दुरुपयोग पर आज चिंता व्यक्त की और इसकी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के समूह पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा. कोर्ट ने कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी क्या इस “औपनिवेशिक कानून” को बनाए रखने की जरूरत है. इसी को लेकर राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा, “उच्चतम न्यायालय की इस टिप्पणी का हम स्वागत करते हैं.”
चीफ जस्टिस एन वी रमणा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि उसकी मुख्य चिंता “कानून का दुरुपयोग” है और उसने पुराने कानूनों को निरस्त कर रहे केंद्र से सवाल किया कि वह इस प्रावधान को समाप्त क्यों नहीं कर रहा. कोर्ट ने कहा कि राजद्रोह कानून का मकसद स्वतंत्रता संग्राम को दबाना था, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और अन्य को चुप कराने के लिए किया था.
इस बीच, भारत सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने प्रावधान की वैधता का बचाव करते हुए कहा कि राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश बनाए जा सकते हैं. उन्होंने कहा कि राजद्रोह की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पहले से ही दूसरी बेंच के लंबित है. इसके बाद कोर्ट इस याचिका को भी उसके साथ जोड़ लिया.
सीजेआई रमणा ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि आखिर इस प्रावधान की जरूरत क्यों है, जब इसके तहत दोषी पाए जाने वालों की दर बिल्कुल कम है. उन्होंने इस दौरान सूचना प्रौद्योगिकी (IT) एक्ट की निरस्त की गई धारा-66ए के तहत केस जारी रखने जैसी लापरवाही का भी जिक्र किया.
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याचिका में कानून को पूरी तरह खत्म करने की मांग
बेंच मेजर-जनरल (रिटायर्ड) एसजी वोम्बटकेरे की एक नई याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध है. उन्होंने याचिका में कहा कि यह पूरी तरह असंवैधानिक है और इसे स्पष्ट रूप से खत्म कर दिया जाना चाहिए.
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट की एक अलग बेंच ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली दो पत्रकारों- किशोरचंद्र वांगखेमचा (मणिपुर ) और कन्हैयालाल शुक्ल (छत्तीसगढ़ ) की याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था.