जुडवा नगरी की रक्षणकर्ता अचलपुर की जगदंबा और परतवाडा की वाघा माता

इच्छापूर्ति पूरी करनेवाली दोनो माता रहने की श्रध्दा है भक्तों में

परतवाडा/दि.29 अचलपुर की जगदंबा और परतवाडा की वाघामाता जुडवा नगरी की रक्षणकर्ता साबित हुई है. इन दोनों मंदिरों में महिला शक्ति का जागर देखने मिलता है. भक्तों की भीड यहां दिनोंदिन बढ रही है.
अचलपुर शहर के सरमसपुरा परिसर में जगदंबा देवी का मंदिर है. 1887 के दौरान का यह मंदिर है. इस मंदिर में माता जगदंबा और माता जगदंबिका की मूर्ति विराजमान है. ब्रिटीशकालीन मंदिर के सामने दशहरा मंदिर है. यहां रावण दहन किया जाता है और गरबा खोला जाता है. जनोपयोगी सामाजिक उपक्रम चलाए जाते है. संत गाडगे बाबा और राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के विचार यहां रखे जाते है. राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज 1952 में यहां आठ दिन थे. इस दौरान संत गाडगे बाबा ने भी अनुयायियों के साथ यहां भेंट दी. श्री जगदंबा देवी की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा को 100 वर्ष पूर्ण होने निमित्त 8 से 10 दिसंबर 1987 के दौरान जगदंबा देवी मूर्ति प्रतिष्ठा शताब्दि महोत्सव भी मनाया गया. शुरूआत में छोटा रहा यह मंदिर अब भव्य स्वरूप में हो गया है.
परतवाडा शहर का वाघा माता मंदिर भी ब्रिटीशकालीन है. देखते ही देखते नागरिकों के सहयोग से यह मंदिर भव्य हो गया है. नवरात्रोत्सव में हर वर्ष यहां लाखों भक्त दर्शन के लिए आते है. पूर्ण वर्ष श्रध्दालूओं की यहां भीड देखने मिलती है. वाघा माता मंदिर के सामने की खुली जगह दशहरा मैदान के रूप में पहचानी जाती है. यहां रावण दहन का कार्यक्रम होता है और गरबा खेला जाता है. साथ ही मेला भी रहता है. छोटी बडी दूकाने भी इस मेले में लगती है. साथ ही महाप्रसाद का कार्यक्रम भी होता है. हर दिन नियमित वाघामाता मंदिर में दर्शन के लिए आनेवाले भक्तों की भी बडी संख्या है.

 

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