राठी सभागार में हुई ‘ जिंकलो ऐसे म्हणा’ की गूंज

डॉ. संजय उपाध्ये का दिलचस्प व्याख्यान

* तुषार भारतीय मित्र परिवार का आयोजन
* महेश भवन खचाखच भरा
अमरावती /दि.15 – जीवन को सुखी समृद्ध बनाने का सार यही है कि बीता हुआ सब भुला दे. भविष्य की चिंता न करें. वर्तमान में मान है जब कि भुतकाल में भूत और भविष्य में विष रहता है, इसलिए वर्तमान में जो प्राप्त है, उसी में तृप्ती समझने एवं सदैव आनंदी रहने का आवाहन विचारक और साहित्यकार डॉ. संजय उपाध्ये ने किया. वे रविवार शाम बडनेरा रोड के महेश भवन में शंकरलाल राठी सभागार में व्याख्यानमाला, अमृत मंथन के तीसरे और अंतिम पुष्प को गूथ रहे थे. भारत- पाकिस्तान क्रिकेट मैच के बावजूद सभागार खचाखच भरा था. अंतिम समय तक लोगों का आना जारी रहा. डॉ. उपाध्ये ने भी किस्से, कोताह, कथाओं और उध्दरणों से बडा ही स्वाभाविक सजीव वातावरण बनाए रखा. अनेक अवसरों पर समस्त सभागार को खिलखिलाए रखा. उनकी अपनी रचना जिंकलो ऐसे म्हणा! को समस्त सभागार ने जोरदार प्रतिसाद दिया. इतना ही नहीं तो लोगों ने अगले सत्र में भी डॉ. उपाध्ये को अवश्य वक्ता के रूप में आमंत्रित करने का अनुरोध तुषार भारतीय मित्र परिवार द्बारा श्रोताओं से मांगी गई लिखित प्रतिक्रिया में देखने मिला.
इस समय व्यासपीठ पर अध्यक्ष डॉ. अनिल सावरकर (अध्यक्ष, संत अच्युत महाराज हार्ट हॉस्पिटल) तथा व्याख्यानमाला के आयोजक तुषार भारतीय उपस्थित थे. प्रत्येक के अंतर्मन को आनंद का स्पर्श और अनुभूति कराने वाले डॉ. उपाध्ये ने अंतिम पुष्प पिरोते हुए जिने की नई दृष्टि दी. ‘ जिंकलो ऐसे म्हणा…’ इस नॉन आध्यात्मिक प्रवचन के माध्यम से उन्होंने उपस्थियों को आनंद का सुंदर स्पर्श कर दिया. जो मिला हैं उसमें दुख नही मानकर मै जीत गया हुं यहा विश्वास नया मौका और उम्मीद देकर जाता है. आज के युग में सुख की और आनंद की व्याख्या बदल गई हैं. पैसा यानी आनंद, सुख होता है. ऐसा विश्वास दृढ से गया है. जिसके कारण परिवार और समाज की सोच बिगड रही है. ठीक है, सुख समृद्धि रहने पर भी आंनद होता है किंतु जो है, उसमें खुश रहने का भी अलग मजा है.
मानसिक रूप से सुदृढ
पुणे से पधारे डॉ. उपाध्ये ने कहा कि मानसिक रूप से सुदृढ होनेवाली शिक्षा प्रणाली कही नहीं है. हमारे शाला और महाविद्यालय कोरा अभ्यासक्रम पढा रहे हैं. जबकि मानसिक रूप से प्रत्येक को मजबूत करने के लिए अध्यात्म और इस प्रकार की व्याख्यानमाला के आयोजन की आवश्यकता है. बच्चा वह सीखेगा, सुनेगा, देखेगा तभी तो अपनाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि अनिश्चितता में ही एक अपना आनंद होता है. इसलिए भविष्य की चिंता छोडकर वर्तमान में जीना और अपने आप को जीता हुआ अर्थात जिंकलो ऐसे म्हणा! यह आवाहन डॉ. उपाध्ये ने किया.
छा गई रचना, लोग आनंदित
डॉ. उपाध्ये ने अपनी रचना जिंकलो ऐसे म्हणा की प्रतियां सभी में बंटवाई और उसे अपने साथ पढने का आवाहन किया. समूचा सभागार व्यासपीठ पर विराजमान डॉ. उपाध्ये के साथ वह रचना पाठ करने लगा और जिंकलो ऐसे म्हणा पर हाथ उठाकर प्रतिसाद देते हुए आनंद व्यक्त करने में भी पीछे न रहा. डॉ. उपाध्ये ने रचना में स्पष्ट लिखा कि जो कुछ जीवन में अब तक हुआ है उसे विस्मृत कर देना ही बेहतर होता है. वर्तमान में जीना सभी के लिए श्रेयस्कर होने की बात उन्होंने शब्दों के सुंदर विवेचन से सभी को अनेक अवसरों पर गुदगुदाया. उनका यही अंदाज और संबोधन की शैली ने विषय को तनिक भी नीरस नहीं होने दिया.
संचालन ज्योती चांदूरे ने और आभार प्रदर्शन मंदार नानोटी ने किया. तुषार भारतीय ने आयोजन को सफल बनाने महेश सेवा समिति के अमूल्य सहयोग का उल्लेख किया. जबकि वक्ता डॉ. उपाध्ये ने तुषार भारतीय के आगामी चुनाव में विजय की घोषणा आज ही कर दी.

* उदार बनें, खुद पर हंसना सीखें
संजय उपाध्ये ने अनेका नेक विनोदी किस्से बताकर अपने जीवन के भी कई मजेदार अवसरों का उदाहरण बात समझाने के लिए किया.उन्होंने अपने विवाह के प्रसंग को उपस्थितों के साथ साझा किया. यह भी आवाहन किया कि हर समय उदार बनेें. स्वयं पर हंसना सीखें. प्रत्येक बात, घटना, विषय को सहजता से लें. हर किसी के प्रति उदारता अपनाएं. उन्होंने यह भी कहा कि हम हर बार नई गलती कर रहे हैं तो बिल्कुल मान ले कि हम प्रगति पर है. हमारी उन्नति निश्चित है. उन्होंने जीजामाता का उदाहरण देकर कहा कि उनके कारण राष्ट्र को छत्रपति शिवाजी महाराज मिले जिन्होंने स्वतंत्रता का पाठ पढाया और प्राप्त किया. डॉ. संजय उपाध्ये के अनुसार प्रत्येक घटना को इस दृष्टि से देखे की यह अपने अच्छे के लिए हैं.

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