मेलघाट में जिरोती उत्सव

श्रावण माह के पहले दिन मनाने की परंपरा

धारणी/ दि. 28 – प्रकृति के साथ एक रूप होते हुए आदिवासी संस्कृति में विभिन्न उत्सव मनाए जाते है. जिसमें आषाढ माह की अमावस के दूसरे दिेन अर्थात सावन माह के पहले दिन मेलघाट में आदिवासी बंधुओं द्बारा जिरोती त्यौहार पूरे सावन महीने उत्साह के साथ मनाने की परंपरा है.

* महिलाओं को सम्मान देने मनाया जाता है जिरोती पर्व
अपने परिवार तथा समाज में महिलाओं का महत्व असाधारण है. महिलाओं के सम्मान के लिए पूरे सावन माह तक जिरोती उत्सव मनाया जाता है. घरों में मिट्टी के रंगों के माध्यम से जिरोती माता का चित्र लगाया जाता है. इस चित्र में जीवन के विभिन्न चरणों मेंं एक स्त्री अपनी जिम्मेदारी को कैसे निभाती है. इसका रेखांकन किया जाता है. महिलाओं के कार्यो के विभिन्न चरणों को रेखांकन किया जाता है. इस कलाकृति की जिरोती माता के तौर पर पूजा की जाती है. जिरोती माता की कलाकृति में महिलाओं के जीवन के चित्र के साथ विभिन्न भावनाओं की कलाकृति गेरू और मिट्टी के साथ रेखांकित की जाती है.
* सागौन की लकडी से बनाया जाता है झूला
सावन माह में देश भर में जहां पेडों पर रस्सियों का झूला बांधा जाता है. वही मेलघाट के आदिवासी बंधु सावन माह में जो झूला बांधते हैं. वह रस्सी का नहीं होता है बल्कि सागौन की लकडी से बनाया गया होता है. जिसे आदिवासी बंधु डोलार कहते हैं. लकडी का यह बडा झूला बांधने के लिए 4 अथवा 2 खंबों पर आडे खंबे को बांधने के लिए रस्सी अथवा चेन का इस्तेमाल नहीं किया जाता. बल्कि पेड की छाल का इस्तेमाल कर झूला बांधा जाता है. सावन के पहले दिन दोपहर तक गदली सुसून यह आदिवासी लोक परंपरा का नृत्य शुरू करते हैं और शाम को गांव में डोलार (झूला) बांधा जाता है. जंगल के विविध पत्तों से, फूलों से डोलार (झूला) सजाया जाता है और उसकी पूजा की जाती है. डोलार पर एक ही समय में 8 से 10 महिला झूला झूलकर पारंपरिक गीत गाती है. जिरोती उत्सव के दौरान महिलाए एक माह तक शाम में झूला झूलकर गीत गाकर जिरोती उत्सव आनंद के साथ मनाती है.

* बच्चे पावडे पर चलने का लेते है आनंद
सावन महीने में महिलाएं झूला झूलकर जिरोती उत्सव मनाती है. वहीं छोटे बच्चे दो बांबू पर पैर रखने के लिए पायदान तैयार करते हैं और उस पायदान पर पैर रखकर चलते हैं. जिसे पावडे कहा जाता है. जमीन को पैर नहीं टिकाकर छोटे बच्चे इस पावडे पर चलकर काफी उंचे दिखते है और वह पावडे के माध्यम से चलने का आनंद लेता है. बारिश के दिनों में जंगल में इकट्ठा होने वाला पानी और कीचड से मार्ग निकालने के लिए प्राचीन समय में ऐसे पावडे का इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन वर्तमान में इसका इस्तेमाल कम हो गया है. फिर भी सावन महीने में जिरोती उत्सव मनाते समय छोटे बच्चे बांबू के ऐसे पावडे बनाकर उस पर चलने का आनंद लेते हैं.

* पोले की कर के दिन विसर्जन
मेलघाट के चिखलदरा तहसील अंतर्गत आनेवाले चुरणी, बीबा, चुनखडी, खडीमल तथा कुही ऐसे अनेक गांव में डोलार अर्थात झूला बांधा जाता है. पोले की कर के दिन इस डोलार को फूलों से सजाया जाता है. गांव की महिलाएं सजधज कर इस झूले पर बैठकर झूला झूलती है और गीत गाती है. शाम को यह डोलार निकाला जाता है. इस डोलार के साथ बांबू के पावडे की गांव में बैंड बाजे के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है और गांव के समीप नदी के तट पर डोलार की पूजा कर डोलार और पावडे को विसर्जित किया जाता है.

 

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