लिव इन रिलेशनशिप का मिला कानूनी आधार
अनुबंध की शर्ते पूरी करने पर महिलाओं को मिलेगी सुरक्षा

* एडवोकेट मोहन गवई की प्रभावी दलील
* नागपुर हाईकोर्ट का अहम फैसला
वाशिम/दि.2 – हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ के न्यायमूर्ति नेरलिकर ने अहम फैसला दिया है कि जो महिला लिव इन रिलेशनशिप में पति-पत्नी जैसा रिश्ता रखनेवाली और अनुबंध की शर्ते पूरी करनेवाली महिला को भी घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत कानूनी सुरक्षा मिल सकती हैं. इस फैसले से लिव इन रिलेशनशिप में रहनेवाली महिलाओं को बडी राहत मिली है.
यह याचिका याचिकाकर्ता सुरेश ने अपराधिक याचिका संख्या 541/2025 के जरिए दायर की थी. इसमें उसने दावा किया कि वह प्रतिवादी महिला से विवाहित नहीं हैैं, वे विवाहित नहीं थे और वे ‘घरेलू संबंध’ के तौर पर साथ नहीं रहते थे., इसलिए महिला ‘घरेलू हिंसा’ अधिनियम की परिभाषा में फिट नहीं बैठती. इस पर हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में सुनवाई के दौरान महिला की तरफ से एड. मोहन एस. गवई ने कोर्ट में जोरदार दलील दी कि संबंधित महिला लिव इन रिलेशनशिप एग्रीमेंट के अनुसार याचिकाकर्ता पर आश्रित थी. दोनों के बीच घरेलू संबंध बन गये और याचिकाकर्ता ने इस संबंध को मान भी लिया था. बाद में, उसी याचिकाकर्ता ने उस पर हमला करके उसे जान से मारने की कोशिश भी की थी. इस संबंध में वाशिम की कोर्ट में प्रतिवादी महिला द्बारा दर्ज किए गए प्रकरण में भी यह रिश्ता साबित हुआ था. सभी सबूतों और दोनों पक्षों की दलीले सुनने के बाद, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि प्रतिवादी महिला घरेलू रिलेशनशिप में रहने वाली महिला है और सबूतों की पूरी जांच से पहले उसे उसके कानूनी अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता. इस फैसले से यह साफ हो गया है कि लिव इन रिलेशनशिप में रहनेवाली महिलाएं भी संरक्षण कानून के तहत अपने अधिकार पा सकती हैं. डॉ. एड. मोहन एस. गवई ने प्रतिवादी महिला की ओर से एड. प्रदीप सोमकुवर और एड. विश्वजीत वानखडे की मदद से एक मजबूत और सफल दलील पेश की. उनकी सर्वत्र सराहना हो रही हैं.





