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विधानसभा चुनाव के लिए मेलजोल व दौडभाग शुरु

तोडफोड वाली राजनीति का दौर होगा तेज

* इच्छुक भी जमकर कर रहे लॉबिंग व फिल्डिंग
* बदलते समीकरणों के चलते बढेगी निर्दलियों की संख्या
मुंबई /दि.13- 5 वर्ष पूर्व सन 2019 के विधानसभा चुनाव में एक दूसरे के मित्र रहने वाले राजनीतिक दल अब आगामी विधानसभा चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ खडे रहने वाले है. जिससे इच्छुकों की तोडफोड व इधर से उधर दौडभाग होना अटल है. इसे ध्यान में रखते हुए विगत कुछ दिनों के दौरान अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा जमकर मोर्चाबंदी की जा रही है. वहीं बदले हुए राजनीतिक समीकरण को ध्यान में रखते हुए अपने मौजूदा राजनीतिक दल में खुद को उम्मीदवारी मिलना मुश्किल जानकर कई इच्छुकों ने दूसरे दलों के नेताओं के साथ गुप्त मुलाकातों का दौर तेज कर दिया है.
ऐसे में कहा जा सकता है कि, आगामी विधानसभा चुनाव में नेताओं के इधर से उधर होने में और तोडफोड वाली राजनीति का दौर तेज होने का नुकसान महायुति व महाविकास आघाडी ऐसे दोनों राजनीतिक गठबंधनों को होगा. साथ ही इच्छुकों की भीडभाड के चलते बडे पैमाने पर बगावत भी होगी. साथ ही वर्ष 1995 की तरह इस बार भी अपेक्षा से अधिक निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीत सकते है. बता दें कि, वर्ष 1995 में 45 निर्दलीय विधायक निर्वाचित हुए थे. हालांकि उनमें से अधिकांश ने तत्कालीन भाजपा शिवसेना युति सरकार को समर्थन दिया था. जिसमें से कुछ को मंत्री पद भी मिला था.

* अब तमाम गणित बदले
– वर्ष 2019 में भाजपा व शिवसेना की युति तथा कांग्रेस व राकांपा की आघाडी के बीच मुकाबला हुआ था.
– उस समय भाजपा शिवसेना युति को स्पष्ट बहुमत मिलने के बावजूद भी ‘चमत्कार’ हुआ था तथा कांग्रेस-राष्ट्रवादी ने शिवसेना के साथ हाथ मिलाकर महाविकास आघाडी की सरकार बनाई थी. जिसमें उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया गया था.
– वहीं वर्ष 2022 में शिवसेना में फुट पडी तथा शिंदे गुट के विधायकों ने भाजपा के साथ एक बार फिर युति करते हुए सरकार बनाई. जिसमें एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री पद का जिम्मा संभाला.
– इसके बाद वर्ष 2023 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में फुट पडी और अजीत पवार के नेतृत्व में राकांपा का एक धडा महायुति में शामिल हुआ. जिसके चलते अब तमाम राजनीतिक समीकरण बदल गये है.

* विधायकों को लेकर तय हुआ ‘सिटींग-गेटींग’ का फार्मूला
शिंदे के समर्थक रहने वाले निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा ने पिछली बार चुनाव नहीं लडा था. परंतु अब वहां पर भी भाजपा से कुछ लोग इच्छुक है. ऐसे में यदि विधायकों को लेकर ‘सिटींग-गेटींग’ का फार्मूला तय होता है, तो महायुति के तहत इस समय जो निर्वाचन क्षेत्र जिस दल के पास है, उसी दल को उस निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवारी मिलेगी. वहीं अन्य स्थानों पर तीनों दलों के बीच उम्मदवारी के लिए काफी खींचतान होगी. इसके अलावा ‘सिटींग-गेटींग’ फार्मूलें का संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के विधायकों के अलावा अन्य इच्छुकों की ओर से विरोध किया जा रहा है और इसी विरोध के चलत महायुति व महाविकास आघाडी के भीतर कुछ लोगों द्वारा बगावत भी की जा सकती है. ऐसे में बगावत को रोकने की चेतावनी दोनों ही गठबंधनों के सामने रहेगी.

* ‘आयाराम गयाराम’ का दौर होगा तेज
– अजीत पवार गुट क कुछ विधायक शरद पवार के संपर्क में है. वहीं महाविकास आघाडी में खुद को उम्मीदवारी मिलना मुश्किल रहने की बात ध्यान में आने के चलते कुछ इच्छुक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे व उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के सपंर्क में है.
– शिंदे सेना व अजीत पवार गुट को सीट छुटने की पूरी संभावना रहने वाले निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा के कुछ तगडे इच्छुक इस समय बगावत की भी तैयारी में दिखाई दे रहे है.
– इस समय यद्यपि शिवसेना उबाठा के साथ केवल 15 विधायक है. लेकिन महायुति में ठाकरे गुट द्वारा लगभग 100 सीटों पर दावा किया जाएगा. ऐसे में उन सीटों पर कांग्रेस और शरद पवार गुट से इच्छुक रहने वाले लोग महायुति के पास आ सकते है.
– अपने साथ रहने वाले निर्दलीय विधायकों के लिए महायुति व महाविकास आघाडी द्वारा संबंधित सीटों पर दावा छोडने की बात कही गई. परंतु उन निर्वाचन क्षेत्रों में समर्थन देने वाले पार्टी के इच्छुक ही बडे पैमाने पर बगावत करेंगे, ऐसा कहा जा रहा है.
– इसके अलावा कुछ इच्छुक मनसे प्रमुख राज ठाकरे के दरवाजे पर भी जा सकते है. वहीं लोकसभा चुनाव में पराजीत भाजपा के एक सांसद द्वारा बगावत करने की तैयारी की जा रही है.

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