महाराष्ट्र

6 लाख बच्चों के कोरोना संक्रमित होने से रद्द की 10 वीं की परीक्षा

राज्य सरकार का बॉम्बे हाईकोर्ट में हलफनामा

मुंबई/दि.1 – महाराष्ट्र सरकार ने कक्षा 10 वीं की परीक्षा रद्द किए जाने को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में दावा किया है कि इस परीक्षा के दौरान कम से कम आठ से नौ बार विद्यार्थियों को परीक्षा केंद्र जाना पडेगा. जिससे उनके कोरोना की चपेट में आने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है. कोर्ट को दिए हलफनामे में राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि कक्षा 10 वीं की परीक्षा में 16 लाख विद्यार्थी शामिल होंगे, जबकि करीब चार लाख कर्मचारियों की जरूरत पडेगी. पुलिस बंदोबस्त व स्वास्थ्यकर्मी भी तैनात करने होंगे.
10 वीं की परीक्षा में अलग-अलग माध्यम के 60 विषय के करीब 158 प्रश्न पत्र होते हैं. उत्तर पुस्तिकाओं को परीक्षा केंद्रों तक पहुंचाना भी काफी मुश्किल भरा है. सरकार का यह भी कहना है कि चिकित्सकीय शिक्षा विभाग की ओर से जारी आंकडों के मुताबिक राज्य में अब तक 5 लाख 73 हजार बच्चे कोरोना संक्रमण का शिकार हुए हैं. इनमें से 4 लाख 11 से 20 साल की उम्र के हैं. अब कोरोना की तीसरी लहर की भी आशंका व्यक्त की जा रही है. जिसमें बच्चों को अधिक खतरा होने की बात कही जा रही है. इस लिहाज से परीक्षा का आयोजन बच्चों के स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है. बता दें कि पुणे निवासी धनंजय कुलकर्णी ने कक्षा 10 वीं की परीक्षा रद्द करने के राज्य सरकार के निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा था.
हलफनामे में स्पष्ट किया गया है कि राज्य सरकार ने अपने अधिकारों के तहत कक्षा 10 वीं की परीक्षा रद्द करने का निर्णय लिया है. राज्य बोर्ड के अलावा सीबीएसई, आईसीएसई व इंटरनेशनल बोर्ड ने भी यह परीक्षा रद्द करने का फैसला किया है. सरकार ने सर्वेक्षण के माध्यम से विद्यार्थियों का मत जानकार ही उनके मूल्यांकन की व्यवस्था बनाई है. इस बारे में शासनादेश भी जारी किया हैं. हलफनामे के अनुसार कोविड-19 प्रतिबंधों के चलते कई बच्चे अपने गांव चले गए हैं. उनका लौट पाना मुश्किल होगा. जून से सितंबर की अवधि परीक्षा के लिए उचित नहीं मानी जाती है, क्योंकि इस दौरान राज्य के कई इलाकों में काफी बारिश होती है. ऐसे में कक्षा 10 वीं की परीक्षा का आयोजन काफी चुनौतीपूर्ण व जोखिम भरा बन गया है. राज्य सरकार ने कागज से कोरोना संक्रमण फैलने की आशंका को भी परीक्षा टाले की एक वजह बताया है.
राज्य सरकार ने कहा है कि कक्षा 12 वीं और कक्षा 10 वीं के विद्यार्थियों की तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि 12 वीं के विद्यार्थी अपेक्षाकृत शारीरिक, मानसिक व जागरूकता के लिहाज से अधिक परिपक्व होते है. हलफनामे में कहा गया है कि 12 वीं की परीक्षा कैरियर के चुनाव के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हैं. इसलिए यह रद्द नहीं की गई है. हालांकि, अभी इस बारे में अंतिम निर्णय भी नहीं किया गया है.

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