महाराष्ट्र

१७ राज्यों ने कृषि उपज मंडी समितियों की मनोपल्ली खत्म की

बिहार, महाराष्ट्र ,गुजरात, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश का समावेश

  • पंजाब व हरियाणा में ४५ हजार कमिशन ऐजंट सक्रिय

नई दिल्ली/दि.२४ – महाराष्ट्र सहित देश के १७ राज्यों में कृषि उत्पन्न बाजार मंडियों की मनोपल्ली खत्म की. पंजाब व हरियाणा में ४५ हजार कमिशन ऐजंट सक्रिय है. राष्ट्रीय लोकशाही आघाडी के दूसरे कार्यकाल में (२०१४-२०२०) भारतीय अनाज महामंडल ने पिछले पांच वर्षो में ७.०१२ लाख करोड रुपए का गेहूं और चावल खरीदी किया. जिसमें पंजाब व हरियाणा का बडे प्रमाण में सहयोग रहा. १.५० लाख करोड रुपए का महामंडल ने २.१७ लाख करोड रुपए का गेहूं तथा ४.९५ करोड रुपए का चावल मोदी सरकार के कार्यकाल में पांच वर्षो में खरीदा गया.
कृषि व आपूर्ति मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार कृषि उपज मंडियों में सक्रिय ४५ हजार कमिशन ऐजंटों के जेब में २३ हजार करोड रुपए गए. संसद की स्थायी समिति के (कृषि) रिपोर्ट के अनुसार महामंडल ने पंजाब व हरियाणा राज्य से गेहूं व चावल कुल उत्पादन में से सिर्फ २६-३१ फीसदी खरीदा. इसका अर्थ यह निकलता है कि कमिशन ऐजंट ने मंडल के बाहर खरीदी-बिक्री से और ३० हजार करोड रुपए की कमाई की है.
कृषि उपज मंडी द्वारा किए गए प्रत्येक व्यवहार ८.५ प्रतिशत कमिशन आकार जाता है. जिसमें पंजाब राज्य में १८ हजार तथा हरियाणा में १७ हजार कमिशन ऐजंट है. केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में कृषि से संबंधित तीन विधेयक पारित किए गए थे. इन विधेयकों का अधिकांश राज्य में विरोध हुआ किंतु पंजाब व हरियाणा में विरोध का सुर कम रहा क्योंकि यहां के सभी कमिशन ऐजंट राजकीय नेताओं के रिश्तेदार या फिर उनके मित्र है.
बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ, गोवा, कर्नाटक, केरल इन १७ राज्यों में कृषि बाजार उत्पन्न मंडियों व कमिशन ऐजंटों की मनोपल्ली खत्म कर दी. केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए तीन कृषि विधेयक का महाराष्ट्र प्रदेश के किसी भी विरोधी पक्ष नेता ने विरोध नहीं किया. उसी प्रकार केरल के माक्र्सवादी नेताओं ने भी विरोध नहीं किया. राष्ट्रवादी कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रफुल्ल पटेल ने तीनों विधेयक के बारे में सिर्फ इतना कहा था कि राकां सुप्रिमों शरद पवार से इस विधेयक को लेकर सलाह मशवरा किया जाना चाहिए था.

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