महाराष्ट्र

देश में 54 बाघों की मौत

पांच माह के आंकडों ने बढाई चिंता

मुंंबई/दि.30- विगत पांच माह के दौरान देश में 54 बाघों की मौत हुई है. जिसमें से सर्वाधिक 42 व्याघ्र मौतें मध्यप्रदेश में हुई है. वहीं इस मामले में महाराष्ट्र दुसरे स्थान पर है. जहां पर विगत पांच माह के दौरान 26 बाघों ने दम तोडा. आंकडों के मुताबिक 57 फीसद व्याघ्र मौतें व्याघ्र प्रकल्प व अति संरक्षित क्षेत्र में हुई है.
उल्लेखनीय है कि, बाघों की सुरक्षा का मसला हमेशा ही चर्चा में रहता है. जहां गत वर्ष समूचे देश में करीब 127 बाघों की मौत हुई है, वहीं विगत पांच वर्ष पांच माह के दौरान देश ने लगभग 601 बाघ खो दिये. जिसमें वर्ष 2021 में ही सर्वाधिक बाघों की मौत होने की जानकारी सामने आयी. हाल ही में पूरे मध्यभारत में आकार के लिहाज से सबसे बडे और सबसे वयोवृध्द के तौर पर गिने गये ‘वाघडोह’ नामक बाघ की ताडोबा के जंगल मेें नैसर्गिक रूप से मौत हुई.
यद्यपि महाराष्ट्र में व्याघ्र प्रकल्पों के विस्तार का सकारात्मक परिणाम दिखाई दे रहा है, लेकिन व्याघ्र मृत्यु के मामले में भी महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है. यह अपने आप में चिंता का विषय है. देश में 57 फीसद व्याघ्र मृत्यु व्याघ्र प्रकल्पों व अतिसंरक्षित क्षेत्र में हुई है. हालांकि व्याघ्र प्रकल्पों में सुरक्षा के इंतजाम बेहद कडे रहने के चलते शिकारियों द्वारा इन वन्यक्षेत्रों में शिकार करने का प्रयास नहीं किया जाता, लेकिन उनकी नजर व्याघ्र प्रकल्प से बाहर रहनेवाले बाघों पर हमेशा रहती है और देश में अब तक तीन बार शिकारियों के पास से बाघों की चमडी, नाखून व दांत जैसे महत्वपूर्ण अंग बरामद किये जा चुके है. चूंकि 39 फीसद बाघ व्याघ्र प्रकल्प से बाहर ही रहते है. ऐसे में उनकी सुरक्षा के लिए विशेष प्रयास किये जाने की सख्त जरूरत विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त की जाती रही है.

* 70 के दशक में उठी थी बाघों के शिकार के खिलाफ आवाज
बाघों की लगातार बढती संख्या को देखते हुए बाघों की शिकार का संकट भी लगातार बढ रहा है. ऐसे में बाघों की शिकार के खिलाफ स्वातंत्र्य प्राप्ती के पश्चात आवाज उठाई गई और भारत के वन्यजीव प्रेमियों व पर्यावरणवादियों ने एक साथ आकर संगठित तौर पर बाघों की शिकार के खिलाफ आवाज बुलंद की. जिसके बाद सरकार ने इस दिशा में कदम उठाने शुरू किये. जिसके परिणामस्वरूप बाघों की शिकार के मामले धीरे-धीरे घटने शुरू हुए, लेकिन बाघों की शिकार की घटनाओं पर पूरी तरह से अंकुश नहीं लगाया जा सका. इसे अपने आप में चिंता का विषय कहा जा सकता है. वहीं दूसरी ओर विगत कुछ दिनों से वन्यजीव एवं इंसानों के बीच संघर्ष भी लगातार बढता जा रहा है, क्योंकि विगत कुछ वर्षों के दौरान बाघों सहित अन्य वन्यप्राणियों के अधिवास क्षेत्र काफी हद तक घटे है और छोटे अधिवास क्षेत्र में बाघों सहित वन्यजीव प्राणियों की संख्या बढी है. इसकी तुलना में इंसानों की रिहायशी बस्तियों का दिनोंदिन विस्तार होता जा रहा है. जिसके चलते इंसानों और वन्य पशुओं का संघर्ष दिनोंदिन बढ रहा है. इन्हीं सब स्थितियों के बीच सरकारी स्तर पर व्याघ्र संवर्धन के लिए सतत प्रयास किये जा रहे है और प्रति वर्ष करोडों रूपयों का खर्च इस काम के लिए किया जा रहा है. लेकिन इसके बावजूद भी व्याघ्र मृत्यु के आंकडे लगातार बढते जा रहे है. जिसे लेकर वन्यजीव प्रमियोें द्वारा चिंता जतायी जा रही है.

* छह वर्ष के आंकडे
वर्ष       व्याघ्र मृत्यु
2017       117
2018       101
2019       96
2020       106
2021       127
2022 (मई माह तक) 54

पिछले वर्ष की राज्यनिहाय स्थिति
राज्य             व्याघ्र मृत्यु
मध्य प्रदेश          42
महाराष्ट्र              26
कर्नाटक             15
उत्तर प्रदेश            9

 

 

Related Articles

Back to top button