सडक हादसों के शिकार 75 फीसदी लोगों को करना पडता आर्थिक परेशानियों का सामना
विश्व बैंक की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
मुंबई/दि.16 – सडक हादसों के शिकार 75 फीसदी लोगों को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पडता है. सबसे ज्यादा परेशानी गरीबों को होती हैे, क्योेंकि उन्हें औसतन कम से कम सात महिने की आमदनी का नुकसान होता है. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है. यहीं नहीं सडक हादसों के 50 फीसदी पीडित डिप्रेशन का शिकार भी हो जाते है. ‘चोट और विकलांगता, भारतीय समाज पर बोझ’ नाम से प्रकाशित इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सडक हादसोें का शिकार होनेवाले गरीबी और कर्ज के चंगुल में ऐसे फंसते है कि उससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है. अध्ययन में सडक हादसों, गरीबी, असमानता और असुरक्षा के बीच की कडी का खुलासा होता है.
विश्व बैंक ने गैरसरकारी संस्था सेव लाईफ फाउंडेशन के साथ मिलकर यह अध्ययन किया है. इसके लिए उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडू और महाराष्ट्र में हादसों के शिकार हुए लोगों से बातचीत की गई है. देश में होनेवाले कुल सडक हादसों के 35 फीसदी इन्हीं चार राज्यों में होते है. लोगों के जवाब के आधार पर सडक हादसों का लोगों की सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक असर को समझने की कोशिश की गई है.
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि सडक हादसों के शिकार लोगोें की जिंदगी बचाने से लेकर उनके आय, इलाज और कानूनी मदद के लिए भी कदम उठाये जाने चाहिए. रिपोर्ट जारी करते हुए केंद्रीय सडक परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि सरकार सडक हादसों को 2025 तक 50 फीसदी कम करने के लिए कई कदम उठा रही है. उन्होंने सभी राज्यों से नए मोटर वाहन अधिनियम को भी लागू करने की भी अपील की है.
महाराष्ट्र और सडक हादसे
-2017 तक कुल पंजीकृत गाडियां 3,02,17,000
-2019 में राज्य में कुल सडक हादसे 27286
-2019 में कुल सडक हादसे में मौत 14608
-हादसे के बाद राज्य के 44 फीसदी गरीबोें को लेना पडा उधार
ग्रामीण गरीब हुए ज्यादा प्रभावित
रिपोर्ट के मुताबिक सडक हादसों के बाद ग्रामीण इलाकों में रहनेवाले 56 फीसदी गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित हुए. इसके अलावा 29.5 फीसदी शहरी गरीब और 39.5 फीसदी उच्च आयवर्ग के लोगों की आमदनी भी सडक हादसोें से प्रभावित हुई. ग्रामीण इलाकों में हादसे का शिकार हुए 44 फीसदी गरीबों को जान गंवानी पडी. जबकि शहरी इलाकों में हुए हादसों में 11.6 फीसदी हादसों में किसी न किसी की मौत हुई.
अधिकतर लोगों को नहीं है थर्ड पार्टी इंश्योरेंस के बारे में जानकारी
सर्वे से यह भी खुलासा हुआ कि गरीब हो या अमीर सडक हादसों का सबसे बुरा असर परिवार की महिलाओं पर पडा. उन पर जिम्मेदारियों का बोझ बढ गया. 50 फीसदी महिलाओं की पारिवारिक आय सडक हादसे के बाद तेजी से कम हुई. 11 फीसदी को अतिरिक्त काम करना पडा. 40 फीसदी को अपने कामकाज में बदलाव करना पडा. सर्वे में जिन ट्रक ड्राईवरों से बातचीत की गई उनमें से दो तिहाई को थर्ड पार्टी लाईबिलीटी इंश्योरेंस के बारे में जानकारी ही नहीं थी. बता देें कि, इस बीमे के तहत हादसे में शिकार सामनेवाले व्यक्ति को मुआवजा मिलता है. हादसों के बाद किसी ड्रायव्हर ने कैशलेस इलाज या मुआवजे के लिए आवेदन नहीं किया. सेव लाइफ के सीईओ पीयूष तिवारी के मुताबिक हादसे के बाद इलाज, इंश्योरेंस और मुआवजे को लेकर जल्द से जल्द बेहतर रणनीति बनाने की जरूरत है.