सोलापुर./दि.4- राज्य को कुपोषण से मुक्त करने के लिए कुपोषणमुक्त महाराष्ट्र यह अभियान शुुरु किया गया है. जिसके अंतर्गत दो वर्ष में 3 हजार 607 करोड़ रुपए खर्च हुए. बावजूद इसके कुपोषणग्रस्त बालकों की संख्या कम नहीं हो सकी. राज्य में फिलहाल 81 हजार 904 कुपोषित बालक होकर करीबन पांच लाख बच्चे कुपोषण (मध्यम) के दरवाजे पर खड़े हैं.
गर्भावस्था में सकस आहार मिलने, प्रसूती के बाद कुछ महीनों तक बालक के लिए समय देने के लिए आयोग की सिफारिश के अनुसार राज्य के 80 स्थानों पर गोधडी प्रकल्प चलाने का निश्चय किया गया. पहले चरण में नंदूरबार,गडचिरोली,उस्मानाबाद, अमरावती व आगामी चरणों में पुणे, धुले, चंद्रपुर जिले में इस तरह से चरणबद्ध तरीके से वह प्रकल्प चलाये जाने का निश्चित हुआ था.इस प्रकल्प से गर्भवती, स्तनदा माताओं को 6 महीने तक उनके शिशु का पालनपोषण व्यवस्थित रुप से करने के लिए उन्हें गोधडी सिलने का काम दिया जाने वाला था. अंगणवाड़ी में बैठकर ही बच्चे की तरफ ध्यान देते हुए उन्हें यह काम करने की छूट थी. लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से फिलहाल यह प्रकल्प शुरु नहीं होने के कारण गर्भवती व स्तनदा माताओं को उनके शिशुओं को घर पर ही छोड़कर काम ढूंढने भटकना पड़ रहा है.
राज्य के 552 एकात्मिक बालविकास प्रकल्प द्वारा कुपोषण मुक्ति का प्रयास होने के साथ ह कुपोषित बच्चों के साथ ही कुपोषण नहीं बढ़ेगा, इस बारे में खबरदारी बरती जा रही है.
प्रति वर्ष 1,803 करोड़ का खर्च
कुपोषणमुक्त महाराष्ट्र अंतर्गत सामान्य व मध्यम बच्चों के लिए हर रोज प्रत्येकी 8 रुपए तो तीव्र स्वरुप के कुपोषित बच्चों पर साढ़े 9 रुपए खर्च किये जाते है. 2020 में राज्य के 60 लाख 80 हजार 177 बालकों में से पांच लाख 32 हजार 948 बालक मध्यम तो 89 हजार 151 बालक तीव्र कुपोषित पाये गए. गत वर्ष राज्य के 61 लाख 61 हजार 25 संशयित बालकों में 81 हजार 904 बालक तीव्र स्वरुप के कुपोषित होने की जानकारी सामने आयी है. कुपोषण मुक्ति के लिए हर रोज पांच करोड़ तो प्रति वर्ष 1 हजार 803 करोड़ का खर्च करने के बावजूद भी इस अभियान को अपेक्षित सफलता नहीं मिली है.
तीव्र कुपोषित बालकों की तीन वर्ष की स्थिति
2019 76,989
2020 89,151
2021 81,904
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