महाराष्ट्र

500 रुपए रिश्वत मामले में 26 साल बाद आरोपी बरी

मामले के आरोपी की हो चुकी मौत

* आरोपी को दोषमुक्त साबित करने परिजनों ने लडी लडाई
मुंबई/ दि.7-घुसखोरी के मामले में घूस की मांग व उसे स्वीकार करने की बात संदेह से परे जाकर साबित किया जाना चाहिए. ऐसे मामले में आरोपी के पास महज पावडरयुक्त नोट मिलना पर्याप्त नहीं हैं. यह कहते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को एक सरकारी कर्मचारी को 500 रुपए रिश्वत लेने के आरोप से 26 साल बाद दोषमुक्त कर दिया हैं. इस मामले में आरोपी की मौत हो चुकी हैं. उसके परिजनों ने आरोपी पर लगे घूसखोरी के दाग को मिटाने के लिए अदालत में यह लडाई लडी. कोर्ट ने 16 दिसंबर 2021 को इस मामले को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया गया था जिसे सोमवार को सुनाया गया.
हाईकोर्ट ने कहा कि, अभियोजन पक्ष इस मामले में आरोपी के खिलाफ घूस की मांग व उसे स्वीकार करने के आरोप को संदेह से परे जाकर साबित करने में विफल रहा हैं. इसलिए आरोपी संदेह का लाभ पाने का हक्कदार हैं. लिहाजा इस मामले में आरोपी रघुनाथ मोकल को सुनाई गई सजा को रद्द किया जाता हैं. मोकल को भ्रष्टाचार निरोध ब्यूरो (एसीबी) ने जमीन के 7/12 दस्तावेज में बदलाव कर उसकी प्रमाणित प्रति जारी करने के लिए 500 रुपए की घूस मांगने के आरोप में फरवरी 1996 में गिरफ्तार कर लिया गया था.

महत्वपूर्ण गवाहों से नहीं की गई जीरह
न्यामूर्ति सी.वी. भडंग के समक्ष इस मामले में अपील पर सुनवाई हुई. इस दौरान आरोपी की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि, मेरे मुवक्किल को झूठे मामले में फसाया गया हैं. इस मामले में कई महत्वपूर्ण गवाहों से जिरह नहीं की गई हैं. मेरे मुवक्किल पर जिस समय घुस लेने का आरोप लगाया गया उस दौरान सरकारी कार्यालय उससे वरिष्ठ अधिकारी (सर्कल अधिकारी) उसके बगल में मौजूद थे. ऐसे में वरिष्ठ अधिकारी की मौजूदगी में रिश्वत लेने की बात को स्वीकार नहीं किया जा सकता. जहां तक बात 7/12 के दस्तावेज की है तो, रिश्वत की मांग से पहले तैयार हो गया था, ऐसे में रिश्वत की मांग का सवाल ही पैदा नहीं होता. मेरे मुवक्किल के जेब में जबरन पैसे डाले गए थे. वहीं सरकारी वकील ने कहा कि, मामले के शिकायतकर्ता व अन्य गवाहों की गवाही आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त हैं. लिहाजा अपील को खारीज कर दिया जाए, मामले से जुडे दोनो पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि, अभियोजन पक्ष मामले से जुडे कई गवाहों से जिरह नहीं की गई है जो, आरोपी के घूस लेने व उसे स्वीकार करने की बात को पुष्ट कर सकते थे. इस मामले में घूस की मांग को स्वीकार करने की बात संदेह से परे जाकर साबित नहीं की जा सकती हैं. कानून में यह तय है कि, घूसखोरी के मामले में आरोपी के पास महज पाउडरयुक्त नोट मिलना पर्याप्त नहीं हैं.

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