पुणे/ दि.19 – देश सहित राज्य में प्राथमिक शिक्षा हेतु सरकारी शालाओं में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या में औसत 6 फीसद की वृध्दि हुई है. यानी गरीब व सर्वसामान्य तबके से वास्ता रखने वाले लोग अपने बच्चों की पढाई के लिए आज भी सरकारी शालाओं पर भरोसा करते है. लेकिन वहीं दूसरी ओर एक हकीकत यह भी है कि, कोविड काल में प्राथमिक शालाएं बंद रहने के चलते प्राथमिक शिक्षा का स्तर काफी हद तक नीचे लूढक गया. स्थिति यह है कि, राज्य में कक्षा 5 वीं के 44 फीसद विद्यार्थियों तथा कक्षा 8 वीं के 24 फीसद विद्यार्थियों को कक्षा दूसरी की किताब पढने में तकलिफ व दिक्कत होती है और वे कक्षा दूसरी की कीताब नहीं पढ पाते. एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2018 की तुलना में मराठी पढने में असक्षम रहने वाले विद्यार्थियों की संख्या में 4 से 10 फीसद की वृध्दि हुई है.
प्रथम एज्युकेशन फाउंडेशन के ‘एन्युअल स्टेट्स ऑफ एज्युकेशन रिपोर्ट’ (असर) सर्वेक्षण में देश के 616 जिलों में 7 लाख विद्यार्थियों की प्राथमिक शिक्षा का मूल्यांकन किया गया. इसके तहत राज्य के भी 33 जिलों में यह सर्वेक्षण हुआ. कोरोना प्रादुर्भाव के बीच वर्ष 2022 में सरकारी व निजी शालाओं की पहली से आठवीं कक्षा में पढने वाले बच्चों का सर्वेक्षण किया गया. जिससे पता चला कि, निजी व सरकारी शालाओं की कक्षा पांचवीं के औसत 80 फीसदी विद्यार्थियों को जोड-घटाना तथ गुणाकार व भागाकार के आसान गणित नहीं आते. यही स्थिति कक्षा आठवीं में पढने वाले करीब 65 फीसद विद्यार्थियों की है. इस रिर्पोट के मुताबिक कक्षा पांचवीं के केवल 23.5 फीसद और कक्षा आठवीं के 49.2 फीसद विद्यार्थियों को अंग्रेजी के वाक्य पढना आते है. जिसका सीधा मतलब यह भी है कि, कक्षा पांचवीं व कक्षा आठवीं के आधे से अधिक विद्यार्थी अंग्रेजी के वाक्य पढने में असमर्थ है.
यद्यपि इन दिनों ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम वाली निजी शालाओं में प्रवेश दिलाने के इच्छुक होते है. लेकिन इसके बावजूद भी सरकारी शालाओं में होने वाले विद्यार्थियों के प्रवेश का प्रमाण 5.8 फीसद से बढ गया है.
– रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2018 में यह प्रमाण 61.6 फीसद था. जो वर्ष 2022 में बढकर 67.4 फीसद हो गया है.
– राज्य के साथ ही समूचे देश में यह प्रमाण बढा हुआ दिखाई दे रहा है.
– सरकारी शालाओं में विद्यार्थियों की संख्या बढ रही है, लेकिन मूलभूत सुविधाओं की अब भी कमी बनी हुई है.
आधे से अधिक विद्यार्थी गणित में कच्चे
– कक्षा तीसरी के करीब 9 फीसद विद्यार्थी 1 से 9 तक अंकों की पहचान करने में असमर्थ रहेे.
– केवल 18.7 फीसद विद्यार्थी ही दो अंकी संख्या का जोड-घटाना करने में सफल रहे.
– इससे पहले किये गए सर्वेक्षण की तुलना में जोड-घटाना करने में सफल रहने वाले विद्यार्थियों की संख्या इस बार 10 फीसद से घट गई है.
– कक्षा आठवीं के 23.9 फिसद विद्यार्थी ही जोड-घटाना कर पाये और 34.6 फीसद विद्यार्थी ही गुणाकार व भागाकार करने में सफल रहे.
– कुल मिलाकर स्थिति यह है कि, कक्षा पांचवीं से कक्षा आठवीं में पढने वाले आधे से अधिक विद्यार्थी गणित के विषय में बेहद कमजोर व फीसड्डी है.