महाराष्ट्र

‘ओपन’ में किसी भी प्रवर्ग का उम्मीदवार पात्र होता है

 ‘एमपीएससी’ को ‘मैट’ ने दिया झटका

  • महिला को छह वर्ष बाद मिला न्याय

मुंबई/दि.7 – पद भरती में यदि खुले प्रवर्ग की सीटें हो तो, वहां पर उसी प्रवर्ग के उम्मीदवार पात्र रहते है. राज्य लोकसेवा आयोग द्वारा दिये गये इस युक्तिवाद को ‘मैट’ द्वारा खारिज कर दिया गया है. साथ ही कहा गया है कि, खुले प्रवर्ग में किसी भी प्रवर्ग का उम्मीदवार परीक्षा के लिए पात्र साबित हो सकता है. मुंबई मैट के न्यायिक सदस्य ए. पी. कुर्‍हेकर व प्रशासकीय सदस्य मेधा गाडगील ने भी इस फैसले पर विगत 3 अगस्त को अपनी मुहर लगायी.
उद्योग उपसंचालक पद के लिए अपात्र ठहरायी गई मंगला लक्ष्मण सिरसाठ ने एड. अरविंद बांदिवडेकर के मार्फत यह याचिका दाखिल की थी. पश्चात उन्हें करीब 6 वर्ष बाद इस मामले में न्याय मिला है. रिक्त रहनेवाले उद्योग उप संचालक के पद हेतु एमपीएससी द्वारा मंगला सिरसाठ के नाम की सिफारिश एक माह के भीतर सरकार के पास की जाये और सरकार द्वारा इसके बाद दो सप्ताह के भीतर उन्हें नियुक्ती दी जाये. ऐसा आदेश मैट द्वारा जारी किया गया है. साथ ही यह भी कहा गया है कि, कानूनन जाति पर आधारित आरक्षण की अनुमति नहीं है.
इस मामले में राज्य के उद्योग सचिव तथा एमपीएससी के चेअरमैन सहित कुल चार लोगों को प्रतिवादी बनाया गया था. एमपीएससी द्वारा अगस्त 2013 में उद्योग उपसंचालक के 13 पदों हेतु विज्ञापन जारी किया गया था. जिसमें 6 सीटें खुले प्रवर्ग के लिए थी और खुले प्रवर्ग में ही दो सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित थी. एनटी संवर्ग से वास्ता रखनेवाली मंगला सिरसाठ ने इस पद के लिए हुई परीक्षा में शामिल होकर 103 अंक हासिल किये थे. किंतु आयोग ने यह कहते हुए उन्हें अपात्र ठहरा दिया कि, मंगला सिरसाठ ने एनटी संवर्ग से रहने के बावजूद खुले संवर्ग की सीट के लिए आवेदन किया. साथ ही मंगला सिरसाठ की बजाय 73 व 72 अंक रहनेवाली दो महिला उम्मीदवारों को उद्योग उपसंचालक पद पर नियुक्ति दी गई. जिसे मंगला सिरसाठ द्वारा मुंबई मैट में चुनौती दी गई.

  • … तो आवेदन ही क्यों स्वीकार किया?

इस मामले की सुनवाई करते समय मुंबई मैट ने एमपीएससी से जानना चाहा कि, यदि खुले प्रवर्ग का बंधन था, तो जब मंगला सिरसाठ ने आवेदन किया, उसी समय उन्हें आवेदन करने से रोकना चाहिए था. लेकिन एमपीएससी ने उनके आवेदन को स्वीकार करने के साथ ही उन्हें परीक्षा में भी बैठने दिया और परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद उन्हें नियुक्ति देने के समय प्रवर्ग की शर्त सामने की गई. जिसका समर्थन नहीं किया जा सकता. इस मामले में सरकार की ओर से प्रस्तुतकर्ता अधिकारी के तौर पर क्रांति गायकवाड ने काम संभाला. वहीं याचिकाकर्ता की ओर से एड. भूषण बांदिवडेकर व एड. गायत्री गौरव बांदिवडेकर ने पैरवी.

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