महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में भाजपा को फायदा या नुकसान?

शिवसेना व राकांपा में फूट से बनी संभ्रमवाली स्थिति

मुंबई/दि.20– वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव पश्चात महाराष्ट्र में एक अलग ही राजनीतिक चित्र निर्माण हुआ है. जिसके चलते इस बार के लोकसभा चुनाव काफी हद तक पेचिदा और रोंचक बनता दिखाई दे रहा है. महाराष्ट्र में इस बार सत्ताधारी महायुति (भाजपा, शिवसेना व राकांपा) तथा विपक्ष में रहने वाले महाविकास आघाडी (कांग्रेस, शिवसेना उबाठा व राकांपा शरद पवार) के बीच सीधी भिडंत है. दो वर्ष पूर्व शिवसेना और गत वर्ष राकांपा में हुई बगावत के बाद महाराष्ट्र में कोई बडा चुनाव नहीं हुआ. ऐसे में इस बार लोकसभा चुनाव में किसका पलडा भारी रहेगा और कौन बाजी मारेगा, यह अनुमान लगाना काफी मुश्किल जा रहा है. साथ ही यह अनुमान भी लगाना काफी कठीन है कि, शिवसेना व राकांपा में हुई बगावत से भाजपा को कितना फायदा अथवा कितना नुकसान होने वाला है.

बता दें कि, महाराष्ट्र में वर्ष 2019 का चुनाव शिवसेना और भाजपा ने युति के तहत साथ मिलकर लडा था और भाजपा सेना युति को विधानसभा चुनाव में बहुमत भी हासिल हुआ था. लेकिन इसके पश्चात शिवसेना के पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद के मुद्दे को लेकर भाजपा के साथ अलगांव कर लिया और कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ मिलकर अपनी सरकार बनाई. लेकिन जून 2022 में एकनाथ शिंदे व उनके समर्थक विधायकों द्वारा की गई बगावत के चलते शिवसेना में सीधी फूट पड गई. इसकी वजह से उद्धव ठाकरे के नेतृत्ववाली सरकार गिर गई तथा भाजपा व शिंदे गुट ने साथ मिलकर राज्य मेें महायुति की सरकार बनाई. इसके साथ ही आगे चलकर शिंदे गुट को निर्वाचन आयोग की ओर से शिवसेना का नाम और चुनावी चिन्ह भी मिल गया. इसके कुछ ही समय बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में भी फूट पड गई और अजित पवार के नेतृत्व में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कई विधायक महायुति से आकर मिल गये. साथ ही इसके बाद अजीत पवार गुट को राष्ट्रवादी पार्टी का नाम और चुनावी चिन्ह मिल गया.

महाराष्ट्र की राजनीति पर बेहद मजबूत पकड रखने वाली राकांपा व शिवसेना में हुए दोफाड के बाद महाराष्ट्र मेें कोई चुनाव नहीं हुआ था. जिसके चलते इन दोनों पार्टियों के दो अलग-अलग गुटों में से कौन से गुट आम जनता में सर्वाधिक लोकप्रीय है. यह बताना काफी मुश्किल है. यहीं वजह है कि, भाजपा के मन में महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम का ेलेकर काफी हद तक संभ्रम है. हालांकि अन्य दलों की स्थिति भी इससे अलग नहीं है.

Related Articles

Back to top button