अकोलामहाराष्ट्र

केवल 10 प्रतिशत घरों में चिडियों के दर्शन दुर्लभ

विश्व गौरैया दिवस पर छात्रों ने की गणना

* बढते शहरीकरण व पेडों की कमी का असर
* सर्वे में सामने आयी जानकारी
अकोला/दि.20-बढते शहरीकरण के कारण गौरैया के दर्शन अब दुर्लभ होते जा रहे हैं. एक सर्वे से पता चला है कि शहर के 10 फीसदी घरों में चिडिया नहीं है. अधिक हरियाली और पेडों वाले क्षेत्रों में ज्यादा चहचहाट रहती है.
गौरैया ही वह पक्षी है जो मनुष्य को पहली बार प्रकृति से परिचित कराती है. सर्वव्यापी गौरैया क्यों लुप्त हो गई? यह सवाल पर्यावरणविदों द्वारा किया जा रहा है. शहरी क्षेत्रों और गांवों में बढते कांक्रीटीकरण, पेडोंकी कमी आदि के कारण गौरैया की संख्या कम हो रही है. इन समस्याओं की ओर आम जनता का ध्यान आकर्षित करने के लिए, माध्यमिक शिक्षा अधिकारी और महाराष्ट्र पक्षीमित्र संगठन के संयुक्त तत्वावधान में ऑनलाइन गौरैया गणना की. जिले से 980 लोगों ने सर्वे में हिस्सा लिया. अमोल सावंत ने कहा कि अकोला में नियमित रूप से क्रियान्वित होने वाली यह गतिविधि इस वर्ष बुलढाणा, यवतमाल, जालना, वाशिम और नासिक जिलों में भी शुरू हो गई है.
सर्वे में 10 सवाल पूछे गए. जनगणना में भाग लेने वाले 32 प्रतिशत नागरिकों के पास 5 से 10 गौरैया हैं, 36.9 प्रतिशत के पास 10 से 20 और 24 प्रतिशत के पास 50 से 100 गौरैया हैं. 10 फीसदी लोगों को एक भी चिडिया नजर नहीं आती. 36 प्रतिशत नागरिक हर बारह महीने में गौरैया देखी जाती है. गर्मियों में 25%, बरसात के मौसम में 23% और सर्दियों में 24% लोगों को गौरैया के दर्शन होते है. तथा 80 प्रतिशत लोग गौरैया के लिए दाना-पानी की व्यवस्था करते है. वहीं 45 प्रतिशत ने गौरैया के लिए कृत्रिम घोंसले लगाए.

* अधिक गौरैया वाले क्षेत्रों में 62 प्रतिशत पेड हैं. 56.2 फीसदी लोगों को गौरैया गणना की जानकारी छात्रों से मिली, जबकि 43 फीसदी लोगों को यह जानकारी समाज से मिली. गौरैया की गणना में राजेश्वर कॉन्वेंट, प्लेटिनम ज्युबिली स्कूल, समर्थ पब्लिक स्कूल, सन्मित्र स्कूल, जिजाऊ कन्या शाला, श्री. सहदेवराव भोपाले विद्यालय, हिवरखेड, जि.प. विद्यालय, कान्हेरी सरप, जि.प. विद्यालय राजुरा घाटे, जे.आर.डी. टाटा और आर.एल.टी. विज्ञान महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने भाग लिया.

गौरैया संरक्षण हेतु क्रियान्वित विशेष गतिविधि में छात्र-छात्राओं की उत्स्फूर्त भागीदारी रही. नई पीढी पढ़ाई के साथ-साथ गौरैया संरक्षण के लिए कृत्रिम घोंसले बनाना, पानी के बरतन रखना आदि रखकर गौरैया का अवलोकन स्वयं करती है. यह संतोष की बात है, ऐसा माध्यमिक शिक्षाधिकारी डॉ. सुचिता पाटेकर ने कहा.

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