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उध्दव ठाकरे को अब कानूनी तौर पर घेरना चाहती है भाजपा

बडे ही सोचे-समझे ढंग से तैयार की जा रही रणनीति

मुंबई/दि.24- शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे ने अपने गुट को असली शिवसेना बताया है. ऐसे में यदि मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे द्वारा शिंदे को अलग गुट के तौर पर मान्यता नहीं दी जाती है, तो सीएम ठाकरे को कानूनी तौर पर घेरने और उन्हें ‘चीत-पट’ करने की नीति पर भाजपा द्वारा परदे के पीछे रहते हुए काम किया जा रहा है. जिसके तहत अपने पास 37 से अधिक विधायक रहने के चलते खूद को असली शिवसेना के तौर पर मान्यता देने और शिवसेना का अधिकृत चुनावी चिन्ह ‘धनुष्यबाण’ ही खुद को मिलने हेतु शिंदे गुट द्वारा केंद्रीय निर्वाचन आयोग के पास आवेदन किया जायेगा. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निष्कासित किये जाने के बाद उपस्थित किये गये कानूनी मुद्दों का आधार अब शिंदे गुट द्वारा लिया जा सकता है.
उल्लेखनीय है कि, सेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे ने दावा किया है कि, वे शिवसेना से बाहर नहीं निकले है, बल्कि शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे के विचारों पर चलनेवाले सच्चे शिवसैनिक है. ऐसे में मूल यानी असली शिवसेना उनकी है और वे खुद शिवसेना के विधानमंडल गट के नेता भी है. शिंदे गुट द्वारा शिवसेना के मुख्य प्रतोद पद से सुनील प्रभू को हटाकर उनके स्थान पर भारत गोगावले को मुख्य प्रतोद नियुक्त किया गया है और इस नियुक्ति को मान्यता देने का निवेदन विधानसभा उपाध्यक्ष से किया गया है.
इसके अलावा शिंदे गुट द्वारा मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे की उस अपील को भी खारिज कर दिया है, जिसमें उध्दव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद और शिवसेना के पार्टी प्रमुख पद से इस्तीफा देने की बात कहते हुए बागी विधायकों से वापिस लौट आने का आवाहन किया था. ऐसे में अब शिंदे गुट ने भाजपा की सहायता लेते हुए विधानमंडल, निर्वाचन आयोग व सर्वोच्च न्यायालय तक कानूनी लडाई लडने की तैयारी शुरू कर दी है.
उधर उध्दव ठाकरे के साथ उनके बेटे आदित्य ठाकरे सहित केवल 17 विधायक ही शेष बचे है. इसमें से भी और कितने विधायक फूटकर पाला बदलते है, इसकी इस समय कोई गारंटी नहीं है. इसके साथ ही शिवसेना में हुई दो-फाड को यदि विधानसभा उपाध्यक्ष द्वारा मान्यता दी जाती है, तो अपात्रता के मुद्दे पर होनेवाला संभावित संघर्ष टल सकता है, लेकिन यदि उध्दव ठाकरे द्वारा अडियल भूमिका अपनाते हुए कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता और खुद होकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया जाता, तो शिंदे गुट द्वारा राज्यपाल से मांग की जायेगी कि, सरकार को विश्वासमत रखने हेतु कहा जाये. शिंदे की इस मांग को निश्चित तौर पर भाजपा का भी समर्थन मिलेगा.
उल्लेखनीय है कि, उध्दव ठाकरे व शिवसेना ने पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लडा था, लेकिन चुनावी नतीजे घोषित होने के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा के साथ विवादवाली स्थिति पैदा करते हुए कांग्रेस व राकांपा से हाथ मिला लिया था. जिसके बाद महाविकास आघाडी की स्थापना करते हुए खुद उध्दव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनकर राज्य की सत्ता हासिल की. इससे पहले युती में रहते समय भी शिवसेना नेतृृत्व द्वारा भाजपा नेताओं के साथ बुरा बर्ताव किया गया. ऐसे मे अब शिवसेना, विशेषकर उध्दव ठाकरे के साथ कोई समझौता नहीं करने और राजनीतिक तौर पर शिवसेना को कमजोर करने की नीति भाजपा द्वारा तय की गई है. जिसमें किसी भी तरह की कोई जल्दबाजी नहीं करते हुए भाजपा द्वारा परदे के पीछे रहकर शिंदे गुट के जरिये अपना खेल बडे योजनाबध्द ढंग से खेला जा रहा है.

* इंडिकेट व सिंडीकेट की तर्ज पर चल रहा खेल
बता दें कि, 12 नवंबर 1969 को कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा ने इंदिरा गांधी पर अनुशासन भंग का आरोप लगाते हुए उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से निष्कासित कर दिया था. जिसके चलते कांग्रेस के कई नेता, पदाधिकारी व विधायक भी इंदिरा गांधी के साथ मूल कांग्रेस से निकलकर बाहर चले गये थे और उन्होंने अपनी नई पार्टी का गठन किया था. ऐसे में एस. निजलिंगप्पा की पार्टी को कांग्रेस (ओ) यानी सिंडिकेट और इंदिरा गांधी के नेतृत्ववाली पार्टी को कांग्रेस (आय) यानी इंडिकेट कहा जाने लगा. पश्चात केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने इंदिरा गांधी के नेतृत्ववाले गुट को कांग्रेस पार्टी के तौर पर मान्यता दी. अब उसी तर्ज पर शिंदे गुट द्वारा केंद्रीय निर्वाचन आयोग के पास खुद को शिवसेना के तौर पर मान्यता दिये जाने हेतु आवेदन किया जायेगा. साथ ही इसके लिए विधान मंडल सहित सर्वोच्च न्यायालय तक भी कानूनी लडाई लडी जायेगी.

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