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महाराष्ट्र उपचुनाव में भाजपा को झटका

पुणे की कसबा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार रवींद्र धंगेकर विजयी

* 28 वर्षों से कस्बा सीट पर था भाजपा का कब्जा, किला ढहा
* चिंचवड सीट पर अब भी उम्मीद बाकी, अश्विनी जगताप चल रही आगे
पुणे /दि.2- महाराष्ट्र विधानसभा की दो सीटों पर हुए उपचुनाव के विश्लेषकों ने जैसा आंकलन किया था. वैसा ही नजारा दिखाई पर रहा है. पुणे की कसबा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार रविंद्र धंगेकर विजयी हुए हैं जबकि चिंचवड़ में बीजेपी प्रत्याशी अश्विनी जगताप ने बनाई बढ़त बनाई हुई है. इस उपचुनाव को अगले साल होने वाले चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है.
बता दें कि, पुणे जिले की कस्बा और चिंचवड इन दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के लिए विगत 26 फरवरी को मतदान कराया गया था. जिसकी मतगणना का काम आज सुबह से शुरु हुआ. मतगणना के बाद कस्बा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार रवींद्र धंगेकर ने 73 हजार 194 वोट हासिल कर जीत दर्ज की. उनके निकटतम प्रतिद्बंदी व भाजपा प्रत्याशी हेमंत रासने को 62 हजार 224 वोट मिले. वहीं चिंचवड सीट पर भाजपा प्रत्याशी अश्विनी जगताप बढत बनाए हुए है. जिनकी जीत लगभग तय मानी जा रही है. विशेष उल्लेखनीय है कि, कस्बा और चिंचवड इन दोनों सीटों को भाजपा का मजबूत गढ माना जाता है. खासकर कस्बा सीट पर वर्ष 1995 से अब तक लगातार भाजपा प्रत्याशी को ही जीत मिलती रही है. लेकिन इस सीट से अब तक विधायक रहने वाले भाजपा नेत्री मुक्ता तिलक का निधन होने के चलते कराए गए उपचुनाव में भाजपा ने इस सीट को खो दिया और यहां पर 28 वर्ष बाद कांग्रेस प्रत्याशी ने जीत दर्ज की.
वहीं दूसरी ओर चिंचवड सीट से भाजपा विधायक रहने वाले लक्ष्मण जगताप के निधन पश्चात कराए गए उपचुनाव में भाजपा ने उनकी पत्नी अश्विनी जगताप को अपना प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा. जिन्होंने 19 राउंड की मतगणना के बाद 68 हजार 556 वोट हासिल किए थे. वहीं उनके निकटतम प्रतिद्बंदी व राकांपा प्रत्याशी नाना काटे ने 55 हजार 848 एवं निर्दलिय प्रत्याशी राहुल तलाटे ने 22 हजार 317 वोट हासिल किए थे. इस सीट पर समाचार लिखे जाने तक भाजपा प्रत्याशी अश्विनी जगताप की जीत लगभग तय मानी जा रही थी.
* मविआ ने भाजपा के 28 साल पुराने किले में लगाई सेंध
– इन वजहों के चलते भाजपा को करना पडा हार का सामना
कस्बा सीट पर भाजपा ने 28 साल से अपना कब्जा जमाया हुआ था. जहां पर इस बार के उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पडा है. जानकारों के मुताबिक ब्राह्मण बहुल्य इस सीट पर ब्राह्मण उम्मीदवार नहीं देना, एक तरह से भाजपा के लिए हार की मुख्य वजह बनी. यह सीट ब्राम्हण बाहुल्य मानी जाती है. इस सीट पर दिवंगत विधायक मुक्ता तिलक भी ब्राह्मण थीं. चूंकि इस बार बीजेपी ने इस सीट पर ब्राह्मण उम्मीदवार नहीं उतारा था. जिसकी वजह से ब्राह्मण वोट उनसे बिदक गया. दूसरी वजह है कि विधानपरिषद चुनाव में बीजेपी ने बीमार मुक्ता तिलक को वोटिंग के लिए एम्बुलेंस से बुलवाया था. साथ ही इस चुनाव में बीमारी होने के बावजूद गिरीश बापट को चुनाव प्रचार के लिए उतारा गया. बापट का यहां अच्छा वर्चस्व माना जाता है. इसकी वजह से भी कार्यकर्ताओं में नाराजगी रही होगी. तीसरी वजह यह भी है शिवसेना के पुराने कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी है. पार्टी टूटने के बाद कई शिवसैनिकों ने शिंदे-बीजेपी गठबंधन के खिलाफ वोट किया होगा. चौथी वजह यह भी है कि कसबा विधानसभा क्षेत्र में कई माइनॉरिटी पॉकेट हैं जहां के लोगों ने एकजुट होकर बीजेपी के खिलाफ मतदान किया होगा. जिसके चलते बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा. इसके साथ ही बीजेपी पर कथित तौर पर पैसे मांगने का आरोप भी लगा था. इसके अलावा शिंदे-फडणवीस के खिलाफ पहली बार महाविकास अघाड़ी के तीनों दलों ने इतनी एकजुटता दिखाई. इस सीट पर विजयी रहने वाले रविंद्र धंगेकर ओबीसी समाज से आते हैं. साथ ही उनका क्षेत्र में अपना एक राजनीतिक वजूद है. उन्होंने साल 2009 में मनसे के टिकट पर बीजेपी के गिरीश बापट को कड़ी टक्कर दी थी. उस समय बापट ने मात्र सात हजार वोटों से वह चुनाव जीता था. इसके पहले वह कई बार स्थानीय पार्षद रह चुके हैं. साल 2014 में उन्होंने चुनाव लड़ा था लेकिन जीत नहीं मिल पाई थी. साल 2017 पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण धंगेकर को कांग्रेस में लाये थे लेकिन उन्हें 2019 के चुनाव में टिकट नहीं मिल पाया था.

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