वैध ठहराया गया जाति जांच प्रमाणपत्र दोबारा अवैध नहीं ठहराया जा सकेगा
हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
मुंबई/दि.25– राज्य में जाति जांच समिति यह पूरी तरह जांच व छानबीन कर प्रमाणपत्र देती रहती है. इसके लिए शासन का अधिनियम है. इस अधिनियम के तहत यह समिति काम करती है. महाराष्ट्र के पुणे, नाशिक, नगर, धुले जाति जांच समिति व्दारा राज्य सरकार के कर्मचारी रहे 10 व्यक्तियों का जाति जांच प्रमाणपत्र अवैध रहने की बात कही गई थी. इस जाति जांच समिति के निर्णय को महादेव कोली और ठाकुर नामक याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी थी.
याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील रामचंद्र मेंदाडकर ने उच्च न्यायालय में पक्ष रखा कि शासन ने ही इस बाबत जाति जांच करने बाबत की प्रक्रिया कैसी रहनी चाहिए, इसके नियम बनाए हैं. यह नियम जिस अधिनियम के तहत आते हैं वह अधिनियम बताते हैं कि एक दफा जाति जांच समिति सभी छानबीन करने के बाद जाति वैधता प्रमाणपत्र को मंजूरी देती होगी तो उस मंजूरी को फिर से पुनर्विलोकन करते नहीं आ सकता. फिर भी जाति जांच समिति ने इसके जाति जांच प्रमाणपत्र अवैध ठहराए है. शासन की तरफ से दावा था कि जाति जांच प्रमाणपत्र संदर्भ में जिन-जिन जिलों की जाति जांच समिति ने इस बाबात आपत्ति दर्ज की थी, उसी कारण इसकी छानबीन पुनर्विलोकन करना चाहिए. लेकिन याचिकाकर्ता के वकील रामचंद्र मेंदाडकर ने मुद्दा न्यायालय के सामने रखा कि अधिनियमानुसार कोई प्रमाणपत्र वैध ठहराया तो उसमें किसी भी समिति को अथवा किसी भी अधिकारी को टालमटोल करते नहीं आ सकता.