पुणे/दि.30– आगामी 50 वर्षों में होने वाले मौसम में बदल का असर भारत के पुनर्वापरनेयोग्य ऊर्जा निर्मिति पर होने की संभावना है. उत्तर भारत की हवाओं की गति बढ़ने, सौर उत्सर्जन कम होने, इन कारणों से आगामी काल में पवन ऊर्जा एवं सौर ऊर्जा निर्मिती कम होने की संभावना है. ऐसी जानकारी संशोधन से सामने आयी है.
भारतीय उष्ण कटिबंधीय हवामान शास्त्र संस्था ने (आयआयटीएम) अबूधाबी सेंटर फॉर प्रोटोटाइप क्लायमेट मॉडेलिंग एवं न्यूयॉर्क युनिवर्सिटी ने हवामा प्रारुप का इस्तेमाल कर भारतीय भूप्रदेश के आगामाी काल के सौर एवं पवन ऊर्जा निर्मिती का विश्लेषण किया है. इस संशोधन का शोध निबंध करंच सायन्स इस संशोधन पत्रिका में प्रसिद्ध हुआ है. चेन्नई की राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्था यह पवन ऊर्जा निर्मिती से संबंधित संशोधन, सर्वेक्षण बाबत जानकारी देने वाली समन्वयक संस्था है.
केंद्रीय नव एवं पुनर्वापरायोग्य ऊर्जा मंत्रालय की आंकड़ेवारीनुसार 2022 तक भारत के समुद्र किनारे के पास पवनऊर्जा प्रकल्प साकार कर ऊर्जा निर्मिती 5 मिगावॉट तक ले जाने का उद्दिष्ट रखा गया है. वहीं 2030 तक यह ऊर्जा निर्मिती 30 मेगावॉट तक ले जाने का प्रयास है. कुल पवन ऊर्जा में से 95 प्रतिशत प्रकल्प आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान इन सात राज्यों में है. सौर ऊर्जा अभियान सहित गत कुछ वर्षों में पवन ऊर्जा,कचरे से बिजली निर्मिती, ऐसे प्रकल्पों में बड़े पैमाने पर निवेश किया गया. जिसके चलते पुनर्वापरने योग्य ऊर्जा निर्मिती बढ़ाने सहित कोयले पर आधारित ऊर्जा निर्मिती कम करने का उद्देश्य देश के सामने है.
* इसका भय
भारतीय हवामान विभाग के अंदाज के अनुसार इस दशकभर में नैंऋत्य बारिश का प्रमाण बढ़ने की संभावना है. परिणामस्वरुप देश का बड़ा भूभाग बादलों से