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कल महाराष्ट्र पहुचेंगे छत्रपति शिवराय के बाघनख

19 को सीएम शिंदे सातारा में करेंगे प्रदर्शित

सातारा/दि. 17 – हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज ने जिस बाघनख के जरिए बिजापुर के सरदार अफजलखान का पेट फाडकर उसकी अतडियां बाहर निकाल दी थी. अब उस बाघनख को विशेष विमान के जरिए लंडन से महाराष्ट्र लाया जा रहा है. साथ ही सर्वसामान्य जनता भी इन बाघनखों को देख सके, इस हेतु इस बाघनख को सातारा स्थित छत्रपति शिवाजी महाराज प्राचीन वस्तू संग्रहालय में रखा जाएगा. इस हेतु 19 जुलाई को सीएम शिंदे की मौजूदगी के बीच सातारा में विशेष समारोह का आयोजन किया जाएगा.
बता दे कि, हिंदवी स्वराज्य पर नजर रखते हुए प्रतापगढ किले की तलहटी तक चले आए अफजलखान ने छत्रपति शिवाजी महाराज को मारने का बिडा उठा रखा था. लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने प्रतापगढ किले के नीचे अफजलखान से हुई मुलाकात के दौरान बाघनख के जरिए अफजलखान का पेट फाडकर उसकी अतडियां बाहर निकाल दी थी. जिसके बाद दावा किया जाता रहा कि, छत्रपति शिवाजी महाराज के बाघनख ब्रिटेन स्थित विक्टोरियां एंड अलबर्ट म्युझियम के बाद है. जिन्हें अब राज्य सरकार द्वारा महाराष्ट्र में लाया जा रहा है. कल एक विशेष विमान के जरिए महाराष्ट्र पहुंचने के बाद इस बाघनख को हिंदवी स्वराज्य की चौथी राजधानी यानी सातारा स्थित छत्रपति शिवाजी महाराज प्राचीन वस्तू संग्रहालय में रखा जाएगा. जहां पर एक विशेष दालान भी स्थापित किया जाएगा. इस बाघनख का स्वागत करने हेतु 19 जुलाई को राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सहित दोनों उपमुख्यमंत्री भी सातारा में उपस्थित रहेंगे.

* बाघनखों की असलियत को लेकर संदेह
उधर दूसरी ओर इतिहास संशोधक इंद्रजित सावंत ने लंडन से लाए जा रहे बाघनख छत्रपति शिवाजी महाराज के नहीं रहने का दावा किया है और सरकार पर इस मामले में झूठ बोलने का आरोप लगाया है. सावंत के मुताबिक कल लंडन से लाए जा रहे बाघनख सन 1971 में विक्टोरिया अलबर्ट म्युझियम में रखे गए थे और उनके पास फिलहाल ऐसे 6 बाघनख ैहै. जिसके चलते संग्रहालय के संचालको ने महाराष्ट्र से गए प्रतिनिधि मंडल के साथ करार करते समय स्पष्ट किया था कि, उन्हें बाघनख को भारत ले जाने के बाद संग्रहालय में रखते समय साफ तौर पर उल्लेखित करना होगा कि, यह बाघनख छत्रपति शिवाजी महाराज के ही है, इसे लेकर संदेह है. लेकिन इसके बाद भी सरकार खुले तौर पर दावा कर रहे है कि, उक्त बाघनख छत्रपति शिवाजी महाराज के ही है. जबकि यह दावा पूरी तरह से झूठा है.

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